Saturday, June 4, 2016

तुम, इम्तेहान और सब..!

तुझसे ही बस फेर लेता हूँ नज़र
कर देता हूँ नज़र अंदाज़

वरना

मोहब्बत भी करता हूँ
तो इम्तेहान लेता हूँ
आँखे पढ़ लेता हूँ
शख्शियत पहचान लेता हूँ

निस्सार करता हूँ वफ़ा
तो बेवफाई पे
जान लेता हूँ
मुझ से मिलना जरा सम्हल कर
लफ़्ज़ों से पहले ज़ुबान लेता हूँ

कितने भी पोशीदा हो तुम
के हो लाख परदों में फितरतें
और छुपा लो जैसे भी
के राज़ हों तो....जान लेता हूँ..!

मुझसे वफाओं में
जो पाओगे महक है जन्नतनशीं
की रिश्तों में, किमाम लेता हूँ
ज़ाफ़रान लेता हूँ

खुद को भी परखता हूँ
बेवफाई से बचता हूँ
अपना भी इम्तेहान लेता हूँ..!

No comments: