
ये मैंने उसी से जाना........
सीढियों पे घंटों मेरी प्रतीक्षा,
दूर से देख कर बुलाने की कोशिश,
वो बोल नही सकता,
पर आँखें सब कहती हैं,
जी भर बातें करना चाहता है,
सीधा नही उठा सकता पर,
हाथ मिलाना चाहता है,
अपनी पतली कमजोर टांगों को,
इरादे की ताकत दे कर,
ख़ुद को खड़ा कर लेता है ख़ुद ही,
दीवार से ज्यादा उसकी हिम्मत है सख्त,
तो सहारा देती है.........
मेरे हाथ को पकड़, अस्पष्ट शब्दों में,
सारी खुशी, स्पष्ट कर देता है..........
प्यार के सिवा कुछ और न दे सका मैं उसे,
मेरी कालोनी में एक "विशिष्ट बच्चा" रहता है...........
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