विजय कामना तो आदि विचार, जीवन परिवृत्त,
सांसारिक परिचालन का आवश्यक निमित्त............
यही मेरी भी प्रेरणा, यही पीड़ा भी,
कभी गतिरोध बन जाती,
कभी मनोरंजक क्रीडा भी................
"विजयश्री कामना" भी,
बड़ा अप्रत्याशित व्यवहार करती है,
कभी हृदयशूल बन जाती,
कभी औषधि बन उपचार करती है.....................
थक जाऊं तो उत्साह देती,
विचारों, योजनाओं का प्रवाह देती,
प्रतिज्ञा बन जाती, अनुरोध बन जाती है,
कभी संबंधों का गतिरोध हो जाती है............
विजय कामना के, और जीव कामना के वश,
युगों से रची बसी, जीव के अंतस
यह "कामना विजयश्री"...............
1 comment:
बढिया रचना है।
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