Friday, July 11, 2008

वो तीन साल की बच्ची........

सब बच्चों के संग, पर थोडी से अलग,

वो फूल सी बच्ची, कुम्हलाई सी..............
गंदे कपडों में लिपटी,

एक फटा बैग कंधे पे टांग,
सड़क किनारे खड़ी रहती है,

और मैं बालकनी में उसी वक़्त.............


सिलसिला हफ्तों चलता रहा,

मैं उस से यूँ ही रोज़ मिलता रहा............


बस आती, बच्चे चले जाते,

पर उसे अकेला छोड़ कर.......................

न जाने बच्चों को या बस को,
देर तक हाथ हिला, विदा करती रहती..........
फिर थके से कदम उसे घर खींच ले जाते.............


बस जाने के बाद, उसके मुड़ने से पहले,

एक रोज़ मैं उसके पीछे खड़ा था.......

घूमी तो गाल थपथपाए, शरारती आँखे मुस्कुरा दीं............

बोली गुड मार्निंग अंकल,
मैंने नाम पुछा, बोली 'शबनम'.....

स्कूल नही गई, मैंने पुछा, तो सर झुका लिया उसने,

एक राज़ दिल में और एक आंसू आँख में छुपा लिया उसने........

फिर हौले से सर उठाया, बोली लड़की हूँ न.........

लड़की स्कूल नही जाती.......


और पापा, जूते सिलते हैं, तो पढने को पैसे नही हैं.....

कुम्हलाई सी वो तीन साल की बच्ची,

अब सिर्फ़ मुस्कुराती है,

रोज़ मेरे पास पढने आती है............

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