
सुनने को कोई नही......
धागे बिखरे हैं दोस्ती के,
रिश्ते बुनने को कोई नही............
सब आते हैं, शब्दों के मोती बिखेर चले जाते हैं,
पर बीनने को कोई नही...........
इस आसमान पे चाँद बन, चमकना हैं सब ने,
पर सितारे भी गिनने को कोई नही.................
सुनो तो मिल लो मुझसे, वरना करना क्या,
बस यूँ ही मिलने को कोई नही................
कांटे बन चुभ कर एहसास दिलाएं दर्द का सब,
बिखरने को फूल बन महकने को कोई नही.................
कहने को तो सब हैं पर सच में अपना कोई नही……….
1 comment:
अच्छी रचना है।
कांटे बन चुभ कर एहसास दिलाएं दर्द का सब,
बिखरने को फूल बन महकने को कोई नही.................
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