Friday, July 4, 2008

बस ह्रदय ही मेरा..............!


संगिनी कहूं, या संग नही कहूं,

उचित है कुछ भी न कहूं............


अपेक्षा ही तो है, हम दोनों के मध्य,


सारी समस्या का मूल, बस यही एक तथ्य...........

फिर सत्यवदन का पुरूस्कार मिला,

संसार भर से तिरस्कार मिला,

अब बोलने से पहले, सौ बार सोचता हूँ मैं,

स्वयं को, स्वयं से भी सत्य कहने से रोकता हूँ मैं.............

जब से मन के संबंधों पे धूल जमी है,

हम दोनों की आंखों में नमी है.........

न मैं कहता हूँ, कुछ, न ही वो.......

पर दोनों की आंखों में प्रश्न होते हैं,

फिर यूँ समझाते हैं एक दूजे को,

की साथ बैठ कर रोते हैं,

सारा जहाँ जब एक तरफ़

हो कर मुझे परखता है,

बस ह्रदय ही मेरा,

मुझे समझता है...................

3 comments:

Anonymous said...

Gauravji bhut sundar. ati uttam.

Unknown said...

Gaurav jee ap ki kavitaye antarman ko jaga deti hai. Hindi jagat me ye ek achha prayas hai.

Anonymous said...

Hindi jagat me ap ki kavitaye ek anutha prayas hai.