Monday, July 27, 2015

फिर नशेमन

मय की बूंदों से
इबारत लिखी है

वो जो छलकने की
आवाज़ें.....
हाँ आवाजें....

उनके नुक्ते रखे हैं

सुरमई शीशों के
आर पार का समां
तोड़ कर बिखेरा है

जाम की लचक
जैसे बेल...
हर्फों में उतारी है

बोतल का नशा
तुम्हारी आँखों के नज़र कर
छिड़का है...

तेरी याद की खुमारी
कम करने को

अपने वज़ूद के पन्नों पे
केसरी आब के छींटें
मारे हैं...

आज फिर
बहुत नशे में हूँ मैं..!

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