मय की बूंदों से
इबारत लिखी है
वो जो छलकने की
आवाज़ें.....
हाँ आवाजें....
उनके नुक्ते रखे हैं
सुरमई शीशों के
आर पार का समां
तोड़ कर बिखेरा है
जाम की लचक
जैसे बेल...
हर्फों में उतारी है
बोतल का नशा
तुम्हारी आँखों के नज़र कर
छिड़का है...
तेरी याद की खुमारी
कम करने को
अपने वज़ूद के पन्नों पे
केसरी आब के छींटें
मारे हैं...
आज फिर
बहुत नशे में हूँ मैं..!
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