मेरे कुछ शुभचिंतक मुझसे कहा करते हैं कि मेरी कविता का भावार्थ जटिल है, मैं लंबे समय तक इस बारे में विचार करता रहा, इसी दौरान कुछ पंक्तियाँ भी अस्तित्व में आ गयीं और इन्होने भी एक जटिल (या सरल मैं नही जानता) कविता का रूप ले लिया, साथ ही मुझे कविता से अपने सम्बन्ध का पता भी चला, मैं पिता हूँ, अपनी रचनाओं का........
पुत्री कहूं तो सर्वथा उचित,
मैं जन्मदाता जो हूँ......
और वो मेरी रचना......
प्रकृति को पुत्रियों के स्वभाव में.....
उडेला करता हूँ....
कभी कभी मैं भी,
शब्दों के साथ खेला करता हूँ.........
हर एक की तरह, यह खेल भी,
रचयिता ने रचाया है,
कि मैंने भी,
रचयिता होने का सुख पाया है.........
इच्छानुसार तोडा है, मरोड़ा है,
बहुत कुछ घटाया और जोड़ा है.....
कुछ में भावों का अतिरेक है,
कुछ को पकाया है, तार्किकता कि धूप में,
कुछ वुत्पन्न हो कर निखरी हैं, नैसर्गिक रूप में.............
न जाने क्यों, मेरी स्वाभाविक जटिलता,
मेरी रचनाओं में है,
वही जो मेरे संकल्प में है,
मेरी कल्पनाओं में है...........
रचनाओं पर है एक विचित्र आवरण,
न जाने क्या है कारण,
शब्दकोष, या व्याकरण.......
मुझे यह बोध है, क्योंकि मुझे भी शुष्क लगती हैं,
शिथिल लगती हैं,
आम इंसान बन कर देखता हूँ तो,
मुझे भी जटिल लगती हैं............
भावार्थ Meaning, अस्तित्व Existance, सर्वथा Exactly, अतिरेक Extreme, व्युत्पन्न Derivative,
नैसर्गिक Natural, आवरण Envalop, Cover, Protection, शब्दकोष Dictionary, व्याकरण Grammer, बोध Realization, शुष्क Dry.
3 comments:
dear Gaurav,
I have just become a fan of your poetry and have publically declared that too. Keep this creativity going!
regards
Subhash
बहतु बहुत खूब....
जो चीज़ें शुष्क और जटिल दिखें वो वैसी ही हों ऐसा सदैव ज़रूरी नहीं, और कविता तो दिल से निकलती है, सो दिल की कोमलता तो उसमें निहित होती ही है, बस उस कोमल भाव तक पहुँचने की चेष्टा करने की आवश्यकता है...
और शुष्क आवरण ज़रूरी है , ताकि भीतरी कोमक्लता बची रह सके... :)
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