Wednesday, December 26, 2007

विकल्प


हर अनुभव ने अभिनय सिखाया,
हर ठोकर ने रास्ता दिखाया,

जीवन में गूढ़ता भावों के अतिरेक से है,
कुछ पाने कि अपेक्षा हर एक से है,

सिर्फ उसी में विचारों कि लय होती है,
तभी तो मानव कि प्रकृति तय होती है,

मानव ही बाँट लेता है, भोजन और अधिकार,
मानव ही गढ़ता हैं मानव के प्रकार,

जिसकी कल्पना ने अनंत विस्तार पाया है,
जिसकी छोटी सी बाहों में संसार समाया है,

चींटी से परिश्रम सीखा, चट्टानों से दृढ़ता,
विकास की कृति में हर युग में नए अलंकार गढ़ता,

अनजाने ही दिव्य द्रव्य को खोजता,
नन्हें हाँथो से बाँध बनाता, प्रकृति को रोकता,

मुश्किलों का विश्लेषण करता,
परिस्थितियों को सोचता,

बस कुछ करते ही जाना अपने में लीन,
दूरदृष्टि तो हैं, पर दिशा विहीन,

विकास के हर अनुच्छेद के पीछे, एक शोध है,
मानव को अनुसंधान कला का बोध है,

विकास के लिए सम्पूर्ण मानवता अभिमत है,
पर क्या प्रकृति सहमत है?

खुद चले प्रकृति के अनुरूप या उसे चला ले,
ये तो उपवन है, चाहे तो पुष्प या कांटे उगा ले!

गूढ़ता= complaxity, अतिरेक = extreme, अपेक्षा = expectation, लय = rythm, गढ़ता = creating, प्रकार = type, कल्पना = imagination, विस्तार = distribution, dispersal, span, अनंत = unlimited,
चींटी = ant, परिश्रम = hard work, दृढ़ता = rigidity, stability, toughness, कृति = creation, अलंकार = accessories, दिव्य = divine, द्रव्य = matter, विश्लेषण = analysis, लीन = busy, mad about, obsessed, अनुसंधान = research, बोध = realization, feeling, to come to know, अभिमत = agreed, convinced, अनुरूप = according.

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