Wednesday, July 2, 2025

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं

जनाजों में, बारातों में,

वस्ल में, मुलाकातों में,

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं!


बचपन महफिलों में बीता जिनका,

अक्सर अकेलेपन में, जवां होते हैं,


कुछ उनके जिस्म पे, घाव होते हैं,

कुछ ज़ेहन पे निशां होते हैं,


अपनी ही परछाइयों से

घबराते हैं, बदगुमां होते हैं,

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं।


ताउम्र गुरूर में रहने वाले

रोज़ ए हश्र पशेमां होते हैं।


सलीबों के हकदार

अक्सर नौजवां होते हैं।

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं।


तरबियत का कर्ज चुकाते,

भले इंसा होते हैं,

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं


हर जगह होते हैं,

पर खुद में कहां होते हैं?

मर्द अक्सर तन्हा होते हैं।

Monday, June 23, 2025

मकाम

तो मुहब्बत में...

मकाम अब ये है,

तुम मुझे ढूंढते हो,

मैं दिल ढूंढता हूं..!


ये कैसा सफर है अन्तस,

कभी रास्ता ढूंढता हूं,

कभी मंजिल ढूंढता हूं..!


क्यों तुमसे मिलने में,

तकल्लुफ है,

क्यों बेचैनी है,

हल ढूंढता हूं तो

कभी मुश्किल ढूंढता हूं


तुम्हारे साथ दिल का

ये सौदा जंग हुआ जैसे

पेशियां हैं, मुकदमे हैं,

कभी मुजरिम ढूंढता हूं

कभी मुवक्किल ढूंढता हूं


मैदान ए कर्बला हुई

जिंदगी जैसे,

शहसवार रहा 

के तिफ्ल ढूंढता हूं


तुझे पहचान ने का जरिया,

वो दिल ढूंढता हूं,

जांघ पे तिल ढूंढता हूं


कभी हल ढूंढता हूं,

मुश्किल ढूंढता हूँ,

कभी तिल ढूंढता हूं..!!

हिसाब

 मेरे अशआरों में भी

कोई नक्श आयेगा,

उनके भी मायने होंगे


इंसान हश्र में खड़ा होगा

सामने आईने होंगे


इल्म जमी पे खड़ा होगा,

बुत सूली पे टंगे होंगे


उन सबका वजन होगा अंतस

जो वादे तुमने हमसे कहे होंगे


सब पल ठहरे होंगे

वक्त के सब कांटे

वहीं रुके होंगे


तुम होगे, हम होंगे,

और सब होंगे,..!!


वहां, वसीयत पढ़ी जाएगी,

इमदाद होगी, फैसले होंगे


ये सब होगा,

जब बस हम होंगे

अकेले होंगे..!!


हो चुका होगा हमारा होना

सब खयाल भी,

हो चुके होंगे..!


क्या ही मंजर होगा

बस तुम होगे

और हम होंगे..?


इतनी तफसीली दुनिया से

क्या ही वास्ता होगा

ज़र्रा से तुम होगे

सिफर से हम होंगे


एक लम्हा होगा

तुम होगे और 

हम होंगे..!!

Thursday, May 1, 2025

मैं वक्त हूं..!

मुझे चाहना, और पा लेना,
दो अलग अलग बातें हैं।
इक मुकाम हूं मैं,
सब के हिस्से,
आसानी से नहीं आता।

इल्म हूं, सब्र की इंतहा हूं,
सबक हूं, इंतजार हूं,
आता हूं,
पर आसानी से नहीं आता।

ठहरो, परहेज करो,
वक्त दो, तरजीह दो,
मुश्किल से आता हूं,
आसानी से नहीं आता।

मुझे पाना है तो,
उम्रदराज होना पड़ेगा
तजुर्बा हूं
जो जवानी से नहीं आता
आसानी से नहीं आता।

हक़ हूं, जायदाद नहीं
लड़ने से मिलता हूं,
बदगुमानी से नहीं आता
मुश्किल से आता हूं,
आसानी से नहीं आता

तुम्हे मेरे इंतजार की,
कद्र करनी होगी,
मैं, कायदा हूं,
मेरी अपनी चाल है,
मैं नाफरमानी पर नहीं आता।

मैं वक्त हूं,
आसानी से नहीं आता..!

Monday, April 28, 2025

परिधि

विभेद जिसे समझने में युगों लगे,
अनंत और शून्यता
मिश्रित कर दी हम ने..!

यह हास्य का नया आयाम है
कि अपर्मिति की सीमा,
तय की हमारी मूर्खता ने..!!

जब लाभ हानि प्राथमिक,
मानवता गौण हो गयी..!

जब व्यथा और घृणा,
ससंचित होने लगे
और प्रेम व्यापार हो गया..!

जब सब त्रिकोणमिति शुष्क है,
तो तुम्हारी आद्रता कैसे,
संरक्षित हो सकी?

कैसे भाग्य के समीकरण ने,
विस्मयकारी हल दिया है?

कैसे क्षेत्रफल,
बढ़ गया अकस्मात्,
भाग्य का?

कैसे विन्यासों को,
आवृत्तियों में,
पुनर्गठित किया विधि ने?

कैसे? मैं केंद्र,
जीवन वृत्त, और
"परिधि" संसार हो गया..!

Thursday, October 31, 2024

लड़के चुप हो गए

मनचाहा खिलौना,

न मिलने पर,

पसंदीदा पटाखा,

किसी और के हाथ जलने पर,

वो चुप हो गए,


पिता की डांट पर,

माँ की फटकार पर,

बहन के तिरस्कार पर,

वो चुप हो गए,

उनकी आँखे बोलती जब,

लड़के चुप हो गए,


कक्षा में पाठ,

समझ ना आने पर,

पहले प्यार के,

अधूरे फ़साने पर,

लड़के चुप हो गए,


वो चुप हो गए,

जब शिक्षक ,

उनके समझे नहीं,

उनके छोटे छोटे मसले,

बड़ों से सम्हले नहीं,

मगर उनकी आँखे बोलती रही,


दिवाली पे बुआ के हाथ से,

दस रुपये का इंतज़ार रहा,

गर्मियों में नानी के घर का,

साल भर इंतजार रहा,

पा नहीं सके तो,

लड़के चुप हो गए,


पढाई की गला काट होड़ में,

नौकरी की दौड़ में,

जब दम घुट गया,

लड़के चुप हो गए,


सिगरेट के कश में,

कभी रंज जला दिया,

शराब के घूटों में,

कुछ गम घुला दिया,

फिर कानों में उनके,

साँसे कुछ फुसफुसाती रही,

पर लड़के चुप हो गए, 


सब तमन्नाओं, भावनाओं को,

कविता कहानियों में जगह मिल गयी,

लड़कों का किशोरपना

कुंवारा रह गया, 

लड़के चुप हो गए..........!!


Wednesday, June 21, 2023

क्या है?

तुम तो कहते थे,

सब टूटा है, सब छूट गया,

तो फिर ये तुम्हारे,

सीने से लगा क्या है?


क्यों इतने बेचैन हो?

ये तुमको हुआ क्या है?


वो तो बस कह देता है,

अपने दिल की बात,

इसमें बुरा क्या है..??


ऐसा नहीं है कि,

ये रास्ता उधर नही जाता..!


मैं उसकी गली से,

गुजरता हूं रोज लेकिन,

अब उसके घर नहीं जाता..!


वो जब कर रहा था,

मेरी लंबी उम्र की दुआएं,

एक मैं, जो कहा करता था,

ये शख्स क्यों मर नही जाता..!

क्या चाहिए क्या नहीं?

मुझ से होकर,

इज्जत चाहिए,

दाद चाहिए..!


बस मेरे मुंह में

ज़बान नहीं चाहिए..!!


उसे मुझसे सब चाहिए,

बस एहसान नहीं चाहिए..!


मुझे ज़र्रा बना कर,

वो आसमान होना चाहता है,

लेकिन उसे अंतस की,

पहचान नहीं चाहिए..!


बड़ा अजीब सा शख्स है,

गत्ते से दिल लगाए बैठा है,

भीतर का कीमती,

सामान नहीं चाहिए..!!


सब सजदे उसके,

बनावटी हैं..!!

दिखावे की इबादतें उसकी,

उसे घर में अपने,

ईमान नहीं चाहिए..!


मेरा मुर्दा जिस्म ही अब ,

शायद रास आए उसे..!

इस जिस्म में उसे,

जान नही चाहिए.!!

मैं

ये जान कर हर शाम,

और गुनाह करता है वो,

के सुबह सुबह,

माफ कर दूंगा मैं..!


जिस बिस्तर पे,

कत्ल हुआ रात मेरा,

अपने ही हाथों,

साफ़ कर दूंगा मैं..!!


हमारी भी कहानी में,

नया कुछ नही,

उसके हाथ में,

हर रात खंजर होता है,

और साथ में मैं..!!


कहानी खत्म और हाथ,

मेरे कुछ आया ही नहीं,

उसके हाथ सब आया,

और साथ में मैं।

सच बोला है उसने

पहली दफा बोला है उसने,

मैं सहम गया हूं,

सच बोला है उसने..!


जिन सच्चाइयों पे,

मेंने पर्दा डाल रखा था,

उनका पुलिंदा,

खोला है उसने..!!


मैं अपने वजूद की,

ओट ले रहा हूं,

आख़िर ऐसा भी क्या,

बोला है उसने?


मैं हर शख्स पे,

इल्ज़ाम लगाता रहा,

क्या खुद को भी,

टटोला है मैंने?

उस से

फिर भी जुदा हो,

बहुत फर्क है,

तोहमत लगाना कोई तुमसे सीखे

इल्ज़ाम लगाना उस से..!!


दिमाग लगा सको,

तो बताना हमे,

पहले दिल लगाना उस से..!!


उसी ने राख किया है,

कोई कैसे बेहतर जानेगा,

मेरा ठिकाना उस से..!!


वो खुदा बन गया है,

दगा दे दे कर,

छुपना नामुमकिन है,

मत बनाना कोई बहाना उस से..!!


कायनात के,

इस पार भी है उस पार भी,

सीख लेना,

हद के पर जाना उस से..!!


मंदिर मसीती, काबे मक्के,

गिरजे रंगशाला उसकी,

मयखाना उस से..!!


सुना है, मसीहा है,

कभी मिलाना उस से..!!

शतरंज

हमारी ज़ुबानों में ज़माने का,

फर्क था,

बातों को, इशारों में,

समझाया हमने...!


बताओ चालों से,

कैसे बचते?

जब शतरंज पे,

घर बनाया हमने..!


पलट पलट के,

कभी भी उलझ पड़ता है,

और कहता है,

बात को बढ़ाया हमने..!


खुद के जिंदा होने का,

एहसास दिलाया हमने..!

किसी से ख़त भेजा,

उसे बुलाया हमने..!!


फिर सिरहाने,

खड़ा किया,

और खुद को,

दफनाया हमने..!!


सफ्ह में सबसे आगे बढ़,

उसने दाद दी, मदद दी,

अपनी बर्बादी का,

जब जश्न मनाया हमने..!

ज़मी ऐ हिन्द - आजकल

यहां अश्क चाट के,

सब जिंदा हैं इक दूजे के,

वतन हुआ या,

रेतीली फसीलों में,

कैद जैसे शहर कोई..?


मुरझा के गिर पड़े,

शाखों से परिंदे तक,

वो आया तो ऐसे,

जहरीली जैसे लहर कोई..!!


मसीहा मान के उस को,

लोगों ने पलकों पे बिठाया,

वो लगा दामन ए मुल्क पे,

जैसे बुरी नजर कोई..!!


न पांव उठा सकता है न हाथ,

न आवाज़ उठा सकता है,

न सिर कोई..!

लगता नही के अब बचा है,

जिंदा यहां बशर कोई..!!


लहरों के निशान रेत पे,

आवाम के माजी का,

अक्स दिखा रहे हैं,

बहती थी इस जमी पे कभी 

मुहब्बत की नहर कोई..!!


लौट के कभी आयेंगे,

तो हिंद की जमी पे,

तलाशेंगे परिंदे कल के, 

और कहेंगे खुद से कराह कर,

मुल्क ए हिंद में भी था,

जम्हूरियत का शजर कोई..!!

आइना समझ ले मुझे

 भला यह कैसी,

फरियाद करता हूं?

तू सामने होता है,

और तुझे याद करता हूं..!


यह कैसा सितम है

यह कैसे कत्ल किया है तूने?

मुझ में और मिट्टी में फर्क

कैसे खत्म किया है तूने?


समझ नहीं आता

इश्क हूं कि समझौता हूं मैं?

तेरे आगोश में होता हूं,

तो क्यों दर्द में होता हूं मैं?


चल आईना समझ ले,

तोड़ दे मुझे,

बंदिश नहीं हूं,

मजबूरी भी नहीं

छोड़ दे मुझे..!!

ठिकाने लगा है वो

 न जाने कितनी और,

सच्चाइयों से महरूम रहता,

ध्यान न देता के,

नजरें चुराने लगा है वो


बिस्तर पे सुबह,

सलवटें नही मिलती अब

बाहर कहीं तो

रात जाने लगा है वो


वो सुना देता है,

मैं मान जाता हूं

कैसे रोज नए,

बहाने बनाने लगा है वो


मुझसे दगा कर 

दर दर की ठोकरें खा रहा है

अब कहीं जा के

ठिकाने लगा है वो


संवार रहे थे

जो दो जहां उसका 

उन्ही हाथों से,

दामन बचाने लगा है वो


अब मान लूंगा ये बात

हां बदल गया वो

मुझे दर्द में देखा है

मुस्कुराने लगा है वो

रिश्ता

 उस से,

राब्ता हो गया,

फिर पहली दफा रात को,

मैं अपने घर जा के सो गया..!!


तेरा नाखून टूटा था,

शहर में चर्चा था,

के मुझे कुछ हो गया..!!


मंदिर, मस्जिद, शिवालों से,

हार कर आया,

मेरी गोद में,

वो अपना दर्द रो गया..!!


इक ख़ज़ाने का आज पता मिला मुझे,

मेरी सांसों के मोतियों में..!

अपनी सांसों का धागा पिरो गया.!


पहले जैसा,

कोई भी नही लौटा,

उसकी गली में जो गया..!!

इश्क के असर दोगले होते हैं

 पंछियों का मौसम बीत जाता है,

फिर बचा इक बूढ़ा दरख़्त होता है,

उसपे कुछ पुराने घोंसले होते हैं..!


लोग मुरझा जाते हैं,

जां सूख जाती है, मगर,

जिस्म हरा भरा रहता है,

इश्क के असर बड़े दोगले होते हैं..!


वो कहीं नहीं पहुंचते, जो,

पतवारों पे खड़े होते हैं..!!

घड़ी की सुइयों संग चले होते हैं।


खुद की हार में जो,

अपनों की जीत देख लें,

वो लोग बड़े भले होते हैं..!

मगर इश्क के असर दोगले होते हैं..!!


गया कम था लौटा बहुत है

 जाने किस के आगोश से

निकल के आता है

लेकिन मेरे गले लग के

रोता बहुत है..!!


कुछ खास ख्वाब देखता है

वो आजकल

सुना है सोता बहुत है


में तुम्हे भी समझाऊं

ये अब मुमकिन नहीं

मेरे दिल से ही मेरा

समझौता बहुत है


मेरे हाथ में

उसकी हथेली जरा सी थी

वो गया कम था 

लौटा बहुत है


तुम्हारी सब खयानतों को

माफ कर दिया मैंने

मेरा दिल छोटा बहुत है


मेरी असली शक्ल देखने की

तुम्हारी ये ज़िद बेमानी है

मुखौटा देख लो, बहुत है


दोस्त?

 वहीं घाव लिखते हो?

वहीं खंजर लिखते हो?

वहीं इक हाथ लिखते हो दोस्त?

कैसे इतने कातिल?

अल्फाज लिखते हो दोस्त?


वफा के तगादों से,

तुमने ही जान ली,

तुम ही हमे

दगाबाज लिखते हो दोस्त?


स्याही से लहू की,

महक आती है

कैसे जुल्म का नगमा लिखते हो?

कैसे सितम का साज लिखते हो दोस्त?

जिंदगी अभी आधी हुई

 रूठ के गया,

तो हर दफा लौट आऊंगा

ये जरूरी नहीं.......


मेरे तुम्हारे बीच

लिबास आ गए हैं

कैसे कहते हो?

कोई दूरी नही ............


मुहब्बत हो तुम मेरी

बर्दाश्त कर लेता हूं

झुका दे मुझे वरना

ऐसी कोई मजबूरी नही.........


तंग आ गया तो,

छोड़ दूंगा तुझे

जिंदगी अभी आधी हुई

जाया पूरी नहीं.........


Monday, September 27, 2021

कहां तक जाओगे 2

ये रिश्तों की पोटली,
ये नातों के तार,
ये उम्मीदों के महल
ये चाहतों के दयार

सम्हाले हुए हैं
हमने जैसे तैसे..!

ये तुम्हारी हसरतों के पुल
ये तुम्हारी उलझनों के बाम
ये चाहते बहुत सी
ये ख्वाहिशें तमाम

ये खयालों के दरख़्त
ये शिकवों के दरिया
ये उलझने तुम्हारी
ये शिकायतों का ज़रिया

सब सम्हाल रखा है हमने
इक अनचाही गांठ बन कर
वही गांठ जो खुल गई
तो सब बह जाएगा
फिसल जायेगा वक्त,
तुम्हारी मुट्ठी से,
सब धरा का धरा रह जायेगा.!

किसको कोसोगे?
क्या पछताओगे?
जब जहां चुक जायेगा?
बताओ, कहां जाओगे?

Sunday, September 5, 2021

कहां तक जाओगे 1

किस से उलझोगे,
कहां सर टकराओगे,
अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

चीखें पलट कर सुनाई देंगी,
जब भी मुस्कुराओगे,
जिस फैसले पे नाज़ है,
कल उसी पे पछताओगे,

ये जुल्फें, पलकें, शोखियां,
सब महज़ छलावे हैं,
इन से दिल लगाओगे?

दिखा दिया है,
तुमने रास्ता जिसे बाहर का,
उसे दस्तरख्वान पे बिठाओगे..!

जबरन अल्फाज,
सजा देती है जुबां पे,
तुम भी जिंदगी का ही,
नगमा गुनगुनाओगे..!!

अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

दामन निचोड़ दिया मैने।

तकलीफ होती है
सांस आने में,

ये सुन के उसे,
बाहों में भरना छोड़ दिया मैंने

उसका अक्स झलक रहा था,
आइना तोड़ दिया मैने

उसके अश्कों के दाग़ों का,
उधार रह गया था बाकी,
दामन निचोड़ दिया मैने..!

सागर उफन जायेगा,
घबरा के दरिया ही,
मोड़ दिया मैने..!!

सिफर हो गया सौदा,
सब पाना था,
तो सब छोड़ दिया मैने..!!

अब छा रहा है वो,
सब आसमान बन कर,
जब खुद को दो गज में,
सिकोड़ दिया मैने..!

दाग़ बाकी रह गया था,
दामन निचोड़ दिया मैने।

Monday, July 12, 2021

झूठे हैं लोग

दिल पे रख लेते हैं पत्थर,
हंस लेते हैं
जो अंदर से टूटे हैं लोग।

मुस्कुराहटों के मुखौटे पहने,
बिलखते, झूठे हैं लोग।

ये अदाओं की कारीगरी,
सब को बराबर आती है,
अनूठे हैं लोग।

बाहर कुछ और,
अंदर कुछ और,
झूठे हैं लोग।

मेरे जनाजे पे,
छाई है खामोशी,
शायद रूठे हैं लोग।

न जाने कहां गए,
वक्त के साथ साथ
बहुत छूटे हैं लोग।

कुछ डूब गए
दरिया - ए - गम में,
कुछ अछूते हैं लोग।

जान गए कीमत,
बाद मुद्दत के,
जनाजा निकलने को है,
अब मुझे छूते हैं लोग।

कैसे मुस्कुरा लेते हैं
रोते रोते,
बहुत झूठे हैं लोग।

Monday, April 19, 2021

बातें कच्ची मिट्टी

खलाओं का अदना सा,
बाशिंदा है वो,
लेकिन मर्तबा उसे,
आसमानी चाहिए..!!

रिश्तों में जिसको,
रत्ती भर भरोसा नही,
उसे भी हर रिश्ता,
खानदानी चाहिए..!!

बातें तो कच्ची मिट्टी होती हैं,
बिगाड़ तो कोई भी सकता है,
इक हुनर आना जरूरी है,
बात बनानी चाहिए..!

सूरत पे मिट गया था,
बड़ी जल्दबाजी में था,
पहले उसे मेरी,
सीरत आज़मानी चाहिए..!!

वो मांग रहा है,
कुछ भी अना सना,
हर चीज अब उसे,
मनमानी चाहिए..!!

मुझको आशनाई में,
शगल से परहेज़ है,
मुहब्बत में कोई,
खुद सा सानी चाहिए..!!

इश्क की कोई,
लिखा पढ़ी नहीं होती,
बस तेरा वादा एक,
मुंहजबानी चाहिए.!!

बचपन की मोहब्बत का,
वो एक पल लौटा दो,
ले जाओ सारी मेरी,
जिसको नौजवानी चाहिए..!!

रहूं तो सब के लबों पर,
मुस्कान बन कर,
जब न रहूं तो,
हर आंख में पानी चाहिए..!!

ऐ खुदा बोल दे तू,
फरिश्तों को अपने
गर मेरा दिल टूटे तो फिर,
जान भी जानी चाहिए..!

सब उठेंगे रोज़ ए हश्र में,
मैं सोता रहूंगा लेकिन,
तेरा इश्क मुझसे सच्चा था,
यही इक बदगुमानी चाहिए.!!

Wednesday, March 10, 2021

नया बहाना


इधर से खतों के सिलसिले रहना,
उधर से, जवाबों का ना आना..। 

तुम मुकर रहे हो, वादों से अपने,
हम भी ढूंढ रहें हैं, कोई नया बहाना..। 

उम्मीदों के घर ने, पते बदल लिए हैं,
तुम भी अब, इस तरफ नहीं आना..।

तंग आ गया हूँ, इस रिश्ते से मैं अब,
कभी एहसान, तो कभी हक जाताना..।

फलक पे खोल के, रख दो झूठ का पुलिंदा,
हर इक राज हम, फिर भी अंदर रखेंगे..।

सहरा रखो, रेत रखो, प्यासा रखो,
हम फिर भी दरम्या, समंदर रखेंगे..।

जो दिल कहे, सब कर लेना,
वक़्त का लेकिन, एहतराम करना..। 

दुश्मन भी मजबूरन करे तारीफ,
कुछ ऐसा काम करना..। 

जाम और साकी का, इंतजाम करना..।
देखो हमारे साथ, आएगा सैलाब ए अश्क भी,
तो कुछ रुमालो का, भी इंतजाम करना..।

नजरंदाजी, तुम्हारी ना होती तो,
मरहम, लगा रहे होते आज वो,
जख्म पे नमक छिड़कने वालों का,
अब पहले एहतराम करना..। 

मैं रोया नहीं, पत्थर ना समझो,
आँखों के सूखे दरिया को,
हमारी नजर से देखने का काम करना..। 

बाजी लगाओ, इश्क की हमसे,
हिजर मे हम, जिस्म को जमी कर देंगे,
गर तुम रूह को आसमान करना..।

मेरे वजूद के चमन मे,
रिश्तों के दरख्त उगते हैं,
हसरतें मेरी रूहानी हैं तो,
मुझ पे अपने पैसे जाया मत करना..। 

कब बीत जाते हैं सब मौसम,
परिंदों को पता नहीं चलता,
वक़्त रहते लौट आना घर,
उम्र परदेस मे जाया मत करना..।


मुकर - ignore/avoid
फलक - sky
पुलिंदा - bag
सहरा - desert
दरम्या - in middle
एहतराम - respect
साकी - bartender
सैलाब ए अश्क - flood of tears
नजरंदाजी - ignorance
मरहम - ointment
हिजर - separation
वजूद - existance
चमन - garden/area/environment
दरख्त - tree/plants
हसरतें - desires
रूहानी - spiritual

Sunday, March 7, 2021

शिकस्त

 मुझे अंजाम मे,

“हमारी” शिकस्त दिख रही है,

तो ज़रा बता हमारा....

आगाज़ क्या है..........?

 

खिलखिलाहट में,

अब भी वो मोती हैं,

पर नज़रें चुराने का अंदाज़ जुदा है,

सब न बता, पर इतना तो बता,

आखिर ये अंदाज़ क्या है......?

 

हमराज़ मान के तुझको,

बाँट ली जिन्दगी अपनी,

बस इतना बता.......

तेरे सीने दबा वो एक,

राज़ क्या है.........?

 

मेरा दर्द न पंहुचा,

मेरी आह न पहुंची तुझ तक,

तो वो चीख ही क्या,

वो आवाज़ क्या है.........?

 

जो है ये सब तो देख,

मैं अपनी शामों को,

पैमानों में घोल के पी रहा हूँ...!

 

मोहब्ब्बत में तो,

सब ही होते हैं बर्बाद,

क्या फ़कीर और,

फिर सरताज क्या है.........?

 

 

हद

कभी तूने सुना,

कभी अनसुना कर दिया,

हाले दिल मैंने यूं,

बयां किया तो बहुत.......

 

जान निकल रही है,

जब जर्रा जर्रा,

जिंदगी की अहमियत,

खुद की कीमत, समझा हूँ,

यूं मैं जिया तो बहुत.....

 

प्यास प्यार की थी,

पर हिस्से अश्क ही पड़े मेरे,

घूँट घूँट, मैंने दर्द,

यूं पिया तो बहुत............

 

तेरा एहसान,

मेरे हर करम पे अब भी भारी है,

फ़र्ज़ अदा मैंने किया तो बहुत.......

 

उम्र कम पड रही है,

और तेरे साथ के पल,

नाकाफी हैं,

यूं जिन्दगी ने जीने की खातिर,

दिया तो बहुत.................

 

घुट घुट के जीना क्या होता है,

तुमने सिखा दिया,

मैंने भी हर,

सफ्हे पे गौर किया तो बहुत......

 

घूँट घूँट यूं दर्द,

मैंने पिया तो बहुत...

बहुत कुछ बाकी रहा फिर भी,

तेरे साथ मैं, यूं जिया तो बहुत............

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Saturday, October 31, 2020

आइना

अक्सर देखता हूं उसे,
खुद को आईने में देखते हुए,
संवरते हुए निखरते हुए..!!

बगाहे आज खुद को,
देख लिया गौर से..!!

बढ़ी दाढ़ी, उलझे बाल,
चेहरे पे शिकन, माथे पे सवाल..!
अधपकी मूंछें, अजीब सा हाल..!!

बड़ा सदमा सा लगा है,
सोच में हूं, क्या ये में वही हूं..!!
कुछ साल पहले था जो..!!

क्योंकि वो वहीं है,
मैं वो नहीं हूं...!!

ये साजिशें आइनों की हैं,
इस देश में मर्द,
अक्सर आइना नहीं देखते...!!

Thursday, October 29, 2020

लोकतंत्र

झांझ मंजीरे की तानों में,
ईदों में, होली दीवाली, गुलालों में,
ढोलक की थापों में, बिरहा आलापों में,
लोकतंत्र बैठता था चौपालों में....!

जनमानस के सदभाव में,
नफ़रत के अभाव में
विकास के उजालों में,
लोकतंत्र संसद में बैठता था,
विपक्ष के सवालों में....!!

हक लूटे, इमदाद लूटी,
घर लूटे, जायदाद लूटी
अब संसदीय गिद्धों की नजर है,
गरीब के निवालों पे...!!!

निचोड़ डाली,
आर्यावर्त की आबरू,
जला दीं फसलें,
अमन ओ आजादी की,
बस कुछ ही सालों में..!!!!

आज मोमबत्तियां लिए,
सड़कों पे खड़ा, मजबूर वो,
जो लोकतंत्र बैठता था संसद में,
विपक्ष के सवालों में..!!!!!


Monday, February 17, 2020

खुशबू

सुबह उठ कर गीले तकिये को देखा,
तो देर तक सोचता रहा....... !

ये शबनम फलक से आई,
के मेरी आंखों से......?


क्या गुलों ने कर ली खुदकुशी.......?
जो बिखरी पड़ी है फिजा भर में खुशबू..!

फिर कभी सोचता हूँ,
शायद आई तेरी साँसों से.....!

उधेड़बुन

बोलती बहुत है,
ख़ामोश भी बहुत है....

ख़ुशी है बेपनाह,
फिर तन्हाई को तेरा,
अफ़सोस भी बहुत है....

ज़िंदगी,
बड़ा एहसान मानती है तेरा,
पर ये फरामोश भी बहुत है...

हाँ,
हारी भी है बाज़ी-ऐ -रूह,
पर बचा जोश भी बहुत है...

लड़खड़ाई है, बाद फुरकत,
अब दगाओं का, होश भी बहुत है......

उधर,
पाकीज़गी भी दिल की बेहिसाब,
मुब्तिला गुनाहों में भी इधर बहुत है.....

इधर
मचलती है वही आरज़ू दामन में,
तेरे रूबरू जो सरगोश बहुत है....

पेशानी पे,
कालिख बन भी लगी है,
किस्मत सफेदपोश भी बहुत है...

अंतस,
आलम है लम्हो का, बेतरतीब,
इधर दर्द-रोज़ बहुत है....

Saturday, November 30, 2019

कोई..!

वो जो लाख सितारों को भी,
"एक" गिनता है, उसकी,
तन्हाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

इक कतरे से जो समंदर हो गया,
उसकी,
गहराई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ख़ाक कर दिया खुद जहां अपना,
बेहिसी, बेखयाली, बदहाली का,
उसकी अंदाज़ा लगाए कोई....!

बेवफाई तक से मोहब्बत हुई जिसे,
उसकी,
आशनाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

जन्नत ओ खुदा से भी नफरत हो गई जिसे,
उसकी,
रुसवाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ज़माना तो सारा खिलाफ निकला,
कोई एक अपना,
कभी तो कहलाए कोई..!

भटका है हां वो बहुत,
बस फिकरे ही कसने?
या राह भी बताए कोई..?

हां बदकिस्मती हमनवा हुई मुद्दतों,
काश, खुशकिस्मती भी,
उसका दरवाजा खटखटाए कोई...!!

ग़मजदा उम्र बीती सारी,
खुशनुमा ग़ज़ल इक,
उसकी खातिर गुनगुनाए कोई..!!

"अंतस" को भी मिल जाए मर्तबा,
काश कोई राह से भटक जाए,
मुझे भी सुबह का भूला मिल जाए कोई..!

Monday, November 4, 2019

अब जब भी शुबहा हो..!

मेरी अजीब हरकतों,
उलटे पुलटे जवाबों से,
आजिज़ आई मेरी जान...।

एक खट्टी सी बात,
और कसैली सी,
रात के बाद.....।

सुबह
जब उनींदी पलकों को,
क़यामत बना कर.....।

अधूरे ख्वाब,
अपनी अंगड़ाई में झटक कर
तकिये पे बिखेर दे।

तो ऐ सुबह उसके गाल पर,
एक नरम सा बोसा देना...।

सुना है मौसम सर्द है
तो ऐ ओस की बूंदों,

जाओ...

उसके रुखसार पे,
गुलाबों की ताज़गी मल के...
मेरी निगाह से जी भर देखना...।

जब वो शर्मा कर,
हथेलियों में ढक ले अपना चेहरा...
तो, ऐ हवा सुन...!

मत छेड़ना उसे।
उसकी नाक लाल हो जाती है।

बेशक उसका गुस्सा काफूर हो जाये।
पर फिर भी,

मेरी धड़कनो,
जाओ उसको कहना

तुम तो खफा हो कर सोती रही
मैं रात भर जागता रहा....!

पर सुबह
वैसा ही मिलूंगा
जैसा मैं उसे मिला था।
सबसे पहली बार...!!



मैं कल से आज तक

लबादा ओढ़ के चलता हूँ
मुस्कुराहटों का
कहीं किसी को हालत मेरी
'उसकी' कारगुज़ारी न लगे,

बंटा देता हूँ हाथ
के किसी को भी 
उसका दर्द भारी न लगे,

लाओ दे दो अपनी मुश्किल
और मैं अपना लूं इस तरह
कि अब तुम्हारी न लगे,

कोई हारा है इस कदर
की मौत का गुलाम है, फिर भी..!
कटी है जिसकी सारी जुए में
वो ज़िन्दगी का जुआरी न लगे..!

दुआ में अब यही
की दिल मिले सबको
बस किसी को दिल की
बीमारी न लगे..!

देखा न गया

मसाजिदों में फेक
"जानवर" की लाश
कर दिया जहाँ को
लपटों के हवाले
दरिंदो से इंसानियत
खुश देखी न गयी.....!!

तोड़ दिया दम
दौरान-ए-जचगी
एक गरीब मा ने..!
रईसों के बनाए,
इक गरीब हस्पताल के आगे..!!

झक कोट वाले दुनियावी
खुदाओं में फिर
सूरत-ए-खुदा देखी न गई।

दौड़ती रही अंधी दुनिया
भरी दोपहर सड़क किनारे
और लाश पर दुधमुँहा
तड़पता रहा मासूम..!!

बैठ गई गाय
बच्चे के मुह थन लगा के
उस से जब देखा न गया।

दर-ए-मसाजिद मिली
कि पण्डे के हाथ,
बाहर गिरजे के पाई
कि लंगर में छक ली

रोटी थी
मुझसे उसका मज़हब देखा न गया...!

मौसम सा सनम

जानता हूँ, आँसुओं की ख़ास,
क़ीमत नहीं कोई,
तो मुस्कुराता रहा.....!!!

कराहना मेरा,
क्या भाता किसी को?
दर्द रहा तो भी,
गुनगुनाता रहा..!!!!

वो घर जला गए मेरा,
अपने उजाले की ख़ातिर,

पर हमारी उम्मीद का,
एक दिया,
ना जाने कैसे,
टिमटिमाता रहा...!!!

मातमपुर्सी की आवाज़ें,
यूँ तो हमें अपने गुज़रने की,
ख़बर दे गयीं,

उस कफ़न को,
कुछ और ही मुहब्बत थी,
के पूरा मरने ना दिया,

पैरों से लग के,
ना जाने क्यों,
फड़फड़ाता रहा...!!!

ना ख़ुद को क़रार आया उसे,
ना हमे ही मुकम्मल होने दिया,
सनम जो मौसम सा हुआ,
आता रहा जाता रहा...!!

फिरकी

कम्बख्त इश्क ने,
बेवक़्त कत्ल कर दिया हमे,
वरना लकीर-ऐ-उम्र,
बड़ी लंबी थी हमारी....!!

उसकी मोहब्बत में,
पलट न सके बाज़ी ये,
ज़िन्दगी बेहतर भी,
हो सकती थी हमारी....!

हश्र दर्द-ओ-ग़म से,
सराबोर था ये सारा..!!
उतरी जब इश्क की खुमारी..!

क्या कमाल का वक़्त रहा?
बीमारी को इलाज समझते रहे,
ज़िंदगी को समझा बीमारी..!!

गुमां था के हमने वक़्त को,
तिगनी नचाई,
क्या पता था, वक़्त ने,
ली फिरकी हमारी...!

क्यों है?


हर किसी को मुझसे,
इतनी उम्मीद क्यों है,

मैं ही मानूं, मैं ही समझूं,
सिर्फ इतना ही नसीब क्यों है?

गर खुशी भी है वज़ूद में,
तो सिर्फ दर्द करीब क्यों है..?

ये टूट टूट कर आते हैं पल,
क्यों चिंदी चिंदी राहतों के,
उलट इसके, मुश्किलों में,
ये मुसलसल तरतीब क्यों है?

कुर्बान कर के खुद को भी,
मर्तबा हासिल न हुआ,
अंतस इतना बदनसीब क्यों है?

न वक़्त समझ आये न सनम,
ये लम्हा इतना अजीब क्यों है?

दावा


उनका दावा है,
बदल गए हैं हम..!!

खबर नही उनको,
भीतर से मर गए हैं हम..!!

कितना वक़्त दिया,
उनको बस इतनी फिक्र..!!
कहाँ इसकी के,
किन हालात से गुज़र गए हैं हम..?

ये दो वजहों ने सब बर्बाद किया,
एक नासमझी, एक वहम..!!

उनकी नज़र बस,
उनके खयाल कीमती..।
खामखां हमारा वजूद,
और खामखां हम..!!

लिए सूखी आंखों में अश्क़ नम,
वाहियात निकला ये जनम..!

गुल ओ किमाम वजूद

इस उम्मीद से कि,
पानी छन्न से टूट जाएगा..!
वो सैकड़ों पत्थर,
तालाब में फेकता रहा..!!

गर्माहट-ऐ-इश्क़ में कहाँ,
दिलचस्पी थी उसकी..??
वो तो बस मतलब की
रोटियां सेकता रहा..!!

शिद्दतों की गहराई,
बिल्कुल न थी उसमे...!!
आंखों में सागर लिए,
मुड़ चला मैं जब,
वो बस बैठा देखता रहा..!

कहां तो उसने,
अपने अरमानो की,
हर आग ठंडी कर ली..!!
यहां सदियों हमारा ये जिस्म,
बस दहकता रहा..!!

मिटा देने को वजूद बेदर्दी से,
मसल दिया पैरों तले..!
ये कमबख्त,
गुल-ओ-किमाम निकला
बरसों महकता रहा....!!!

वो वर्दियों वाले लोग..!

जाने किस मिट्टी के बने थे,
अंधेरी वतन की रात को,
नई सहर कर गए..!!

वतन वाले सुकूं से पहुंचे घर,
जब शहीद शमशान भी,
रोशन कर गए..!!

आईं जब गोलियों की आवाज़ें,
सफेद कुर्तों वाले, छुप गए,
सबसे पहले डर गए..!!

सिक्केबाज़ों की साजिशों के,
शिकार हैं, जान कर भी,
वो हर हद से गुज़र गए...!!

यहां बदल गए थे घर, और लोग,
जब वो वर्दियों के लोग,
लौट अपने शहर गए..!!

बड़े एहसान फरामोश निकले,
ये ऊंचे लोग, जब आन पड़ी,
चालाकी से मुकर गए..!!

ये फौज़ प्यादों से ज्यादा नहीं,
इन फरामोशों की नजर,

देखी जब हकीकत तो
मेरे खयाल तक ठहर गए..!!

हमारी गफलतों ठीकरे,
खुद ले लिए, आज़ादी,
हर सुबह तुम्हारी नज़र कर गए....!!

जिस्म इक को बचाने की,
जद्दोजहद थी बड़ी,
बच भी गया, बदले में,
लेकिन लाखों सर गए.....!!

शायद दूसरा भी किनारा हो?

सूखे ये वक़्त की नदी
तो दिखे, उस पार,
शायद दूसरा भी किनारा हो..!

इस ढहते वजूद का भी,
कोई तो सहारा हो..!!

हो ना हो वाकई,
चलो कहने को ही हो,
कोई तो हमारा हो..?

ढो लिया मोहब्बत को बहुत,
अब उतार दें ये बोझ दिल से,
हुक्काम ए इश्क का
फकत एक इशारा हो...!!

हम तो रोज़ ही रुसवा हैं,
सुकूं अफ्तारी भी हो थोड़ी..!
हां, शर्मिंदगी का तुम्हारी भी,
कभी महफ़िल में कोई नजारा हो..?

तुम भरे जाओ जाम पे जाम,
और गम ए सागर हम पीते रहे,
फिर हलक भी सूखा ही रहा..!
भला यूं कैसे गुजारा हो..?

माना ये सब दरम्यान है,
पर भला हम कहां हैं इसमें?
के इब्तेदा भी तुम्हारी,
अंजाम भी तुम्हारा हो..?

नागवार लगी हमें उम्र सारी,
हमने कुछ यूं गुज़ारी....!
गोया कोई एहसान उतारा हो...!!

पड़ा मिले राह में कोई,
तो पहुंचा देना घर तक,
शायद उसको भी,
किसी ने तड़पा के मारा हो..!

क्या है?

बड़ी दिलचस्पी है तुम्हे,
हमारे हाल-ओ-हालात में..!!
वजह क्या है..?

सब तो खोल दिए हैं,
बंधन के खयाल में क्यों हो,
बची अब गिरह क्या है..?

तुमने तो मिलन के,
जलसों में यकीं रखा है,
फिर एक ये विरह क्या है..??

खो दिया है गर,
अम्न- ओ- सूकूं,
माने हार गए,
फिर भी दामन में लिपटी
वो फतेह सी क्या है..?

कहां तो कोई कशिश बाकी न थी,
फिर ये शिद्दत ये जुनून,
बेतरह क्या है..???

जुदा जब हो ही चुके,
तो ये कुछ ज़रा सा,
जुड़ा क्या है......??

Thursday, October 17, 2019

किसी तरह

हर चाहने वाला मेरा,
दीदावर है,
किसी न किसी तरह..!!

हां यूं तो बेअसर हूँ,
पर बडा असर है तुझपे,
किसी न किसी तरह...!!

जिंदगी बाकायदा अंधेरी है,
पर जब से तू है, दोपहर है,
किसी न किसी तरह..!!

सिर्फ शाम कहा जाता था मैं,
पर ये कैसे हुआ?
सहर है किसी न किसी तरह?

पगडंडियां सब खो गयीं,
राह भटका था मैं,
तेरे मिलने से कैसे?
रहगुज़र है किसी तरह..?

इश्क़ की बात कर

दूरियों का ज़िक्र न कर,
पास आने की बात कर

हार जाने का न नाम ले अब
तेरे कहने से उलझ गया हूँ,
अब लड़ रहा हूँ हर सवाल से,
तो जीत जाने की बात कर....!

जियें या कुर्बान हो जाएं,
फैसला मुश्किल नही,
मुलाकात की बात कर...!

सहरा में भटकने वाला आदम हूँ,
प्यास की बात कर,
पानी की बात कर..!!

बेरुखी रही है, किस्मत हमेशा,
नज़दीकियों की बात कर,
अब सिर्फ इश्क की बात कर..!!

Thursday, September 19, 2019

मायने

सूख तो जाने ही हैं ज़ख्म सब,
सर पे तपता सूरज एक ओर,
उधर बहता मुसलसल ख़ून जो है..!!

क्या हुआ जो फ़ना भी हुए,
देखो जिहाद हासिल है..!
कुछ अजीब ही है ये,
वतन का जुनून जो है..!!

हमने वतनपरस्ती के,
मायने तक बदल डाले,
तुम भी बदलो ये,
सड़ते गलते कानून जो हैं..!!

Tuesday, September 17, 2019

हकीकत

खींच लेगा कोई इस कदर,
क्या कोई ऐसी भी वजह है?

सोचा न था नियत बदलेगी,
मिलने में रखा क्या है..?

अजीब सा हो रहा है कुछ,
न जाने आखिर क्या है..?

खुमार है जुल्फों का, और,
आंखों से नशा दिया क्या है..?

ईमान डगमगा रहा मेरा,
तुमने देखो किया क्या है..?

खूबसूरत लग रही है,
कमबख्त ये कैसी ख़ता है..?

अंजुमन, जानता हूँ, बेरंग मेरा,
तेरे नाम की होली में रंगा है..!!

दिल में खलबली भी मची है
कुछ न होगा ये भी पता है..!

होगी बस हकीकत पेश्तर,
और सब रंग उड़ जाएंगे,
चंद अगले रोज़ में यही बदा है..!!

Monday, September 16, 2019

सौदे

रिश्ते में रही यूं बंदिश,

कि मेरे थे अश्क़,

और उसकी आँखों से निकले..!!

कैद में बीत गयी उम्र,
कौन अब सलाखों से निकले..?

इक्के दुक्के सिक्के,
कैसे लाखों के निकले..?

ठगे तो गए इश्क में लेकिन,
सौदे मुनाफों के निकले...!!

किसी न किसी ने तो,
पढ़े ही होंगे, वरना..!!

कैसे इतने खत
बिना लिफाफों के निकले...?

रसोई और कविताएं

तुम्हारे इंद्रधनुषी प्रेम ने,
मेरे हर काव्य को,
भिन्न स्वाद दिया..!!

कविताएं चटपटी,
चटखारेदार हैं,

मीठी भी, तीखी भी,
सीली सी कुछ,
कुछ गीली सी,
सूखी सी कुछ,
कुछ रसीली सी...!!

कोई बनारस हो गई,
कोई प्रयाग है,
किसी में शर्करा तो,
किसी मे मिर्चों की आग है..!!

देखो....तुम्हारी रसोई,
मेरी कविताओं में बस गयी..!!

Monday, September 2, 2019

सफ़ह-ऐ-इश्क़

तोड़ दी दीवार-ओ-नींव
तमने अपने ही हाथ, रिश्तों की,
फिर भी नुक्कड़ पे,
यादों का मकान बाकी है..!!

हमने भी अखलाक निभाया है,
दुनियावी जो थे चुका दिए,
रूहानी एक एहसान अभी बाकी है

कैसे सोच लिया कि,
मुकर के बच जाओगे..??

माना सब सफ़हे
हिफ़्ज़ हुए इश्क के लेकिन,
इक इम्तेहान अभी बाकी है..!!