तो मुहब्बत में...
मकाम अब ये है,
तुम मुझे ढूंढते हो,
मैं दिल ढूंढता हूं..!
ये कैसा सफर है अन्तस,
कभी रास्ता ढूंढता हूं,
कभी मंजिल ढूंढता हूं..!
क्यों तुमसे मिलने में,
तकल्लुफ है,
क्यों बेचैनी है,
हल ढूंढता हूं तो
कभी मुश्किल ढूंढता हूं
तुम्हारे साथ दिल का
ये सौदा जंग हुआ जैसे
पेशियां हैं, मुकदमे हैं,
कभी मुजरिम ढूंढता हूं
कभी मुवक्किल ढूंढता हूं
मैदान ए कर्बला हुई
जिंदगी जैसे,
शहसवार रहा
के तिफ्ल ढूंढता हूं
तुझे पहचान ने का जरिया,
वो दिल ढूंढता हूं,
जांघ पे तिल ढूंढता हूं
कभी हल ढूंढता हूं,
मुश्किल ढूंढता हूँ,
कभी तिल ढूंढता हूं..!!
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