Thursday, December 18, 2025

नया चलन

इस कदर अपना नहीं रहा मैं,

कोई मेरा नाम पूछे

तेरा नाम बता देता हूं मैं


चल एक नया चलन चला देता हूं मैं

कुछ जलने पे तू हंस पड़ता है,

तो ये घर खुद जला देता हूं मैं,


जैसे कांच हो गया हूं अब

तुझे हर राज़ बता देता हूं मैं


मेरे कल का भरोसा नहीं रहा

तुझे आज बता देता हूं मैं


इंतजार से इस कदर मँझ गया

कौन जानिबे दर है मेरे

और किसके कदमों की है

आहट दूर से बता देता हूं मैं


इश्क ने इस कदर घोल दिया

मुझे फिजाओं में, कोई पूछे

हर बुत को शीरी, खुद को

फरहाद बता देता हूं मैं


जिनको तेरा आरज़ू ए दीदार

मुतमईन कर देता हूं

उनको अपने दिल के

ज़ख्म दिखा देता हूं मैं


लिल्लाह..|

ये क्या अजीब कैफियत है?

मक्के की राह

पूछने वालों को भी

तेरे घर की राह बता देता हूं मैं..|

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