Tuesday, June 16, 2009

तम्मनाएं.............

बुझी बुझी सी शाम में,
यादों की सूखी लकडियाँ,
छिड़का करता हूँ.........

इस उम्मीद में,
की कोई तो लौ उठेगी.....

कुछ तो रौशनी होगी,
थोड़ा तो बदन तपेगा.........
और कोई तो एहसास बचेगा..........

कमबख्त ये सर्दी,
जिन्दगी बुझाने में लगी है.......

तुम आओ, तो बदन पे,
कुछ तम्मनाएं सेंक लूँ..........

तुम्हे जी भर,
बस एक नज़र देख लूँ........

क्या पता, जिस्म की ये अंगीठी,
दुबारा जले न जले.......

और मुझे शिकवा रह जाए..........

क्यों न मैंने आग दे दी,
अपने अरमानों को............

4 comments:

वर्तिका said...

वाह!

Murari Pareek said...

IATANI SARDI KA AHSAAS PAHLI BAAR DEKHA HAI, HA...HA... KYA KARUN MAJAK KARNE KI LAT LAGI HAI

ajay saxena said...

gaurav ji...kavita padh kar to aapse rubaroo milne ki ichcha ho rahi hai.......

डिम्पल मल्होत्रा said...

तुम्हे जी भर,
बस एक नज़र देख लूँ........koee shiwa nahi rahna chiye...