Saturday, June 6, 2009

'शोना' मैं हूँ न..........

मेरा दौर-ऐ-गर्दिश,
और हाथ थाम लिया,
आकर तुमने................

अपने पेशानी की सलवटों को,
तुम्हारी मुस्कुराहटों में घोल कर,
हवा में उडाता रहा, बरसों बरस.........
उन मुश्किलों में भी,
मुस्कुराता रहा...................

कुछ छोटी छोटी बातों पे,
मेरा फिक्रमंद हो जाना,
और तुम्हारा मुझसे भी ज्यादा,
सिर्फ़ मेरे लिए...........

गले लगा कर,
वो कह देना.........
'शोना मैं हूँ न'........
इक इक पल में,
सौ सौ, जिंदगियां देता रहा है मुझे............

तुम्हारे काँधे सर रख के,
मैंने कितने ही दर्द बहाए हैं............
ये सारे दर्द यूँ तो,
अश्क बन कर निकले थे............
पर कभी सितारे बने तो कभी फूल,
कभी चमके तो कभी मुस्कुरा दिए.....

फोन पर मेरे,
खांसने की एक आवाज़ से,
तुम्हारा परेशां हो जाना,
सच कहूं तो जीने की,
वजह बना जाता है.........

नही जानता कि, जीना क्या है.......
पर जानता हूँ, कि सिर्फ़ तेरे लिए,
जीना क्या है............

अक्सर सोचता रह जाता हूँ,
कि कैसे जान जाते हो,
कब दिल भरा है और जेब खाली............

इन मीलों के फासले के बाद भी,
कैसे मेरी आंखों की नमी,
दिख जाती है तुम्हे............

कैसे सुन लेते हो, वो भी,
जो मैं ख़ुद से भी नही कह पाता...............

मेरी जिन्दगी को,
किनारे मिलने लगे हैं..............
सिमटने लगी है दुनिया,
सिर्फ़ तुम तक...........
तो कहो मैं क्या करू,
तुमने ही किया है ये सब......

तुम्हारे गेसुओं की खुशबू,
कहती है, हर रात मुझसे.........
'शोना' मेरे बिना मत जीना..............

तो कहो क्यों न मैं वादा कर लूँ............

और कह दूँ.........
'जानू' ये वादा कभी नही टूटेगा..................

1 comment:

वर्तिका said...

beautiful.... i just loved it...

निम्न पंक्तियाँ तो बस बहुत खूब्सोरती से तराशी हैं आपने....
"नही जानता कि, जीना क्या है.......
पर जानता हूँ, कि सिर्फ़ तेरे लिए,
जीना क्या है............"


"कि कैसे जान जाते हो,
कब दिल भरा है और जेब खाली............"