दोआबा की सर्दियां,
नवम्बर की वो धुंद,
जिन्होंने नही देखी,
वो यहाँ, गर्द-ओ-गुबार को,
सुहाना मौसम कहते हैं.....
पैसा मेरी खातिर यहाँ...
मसाइल-ओ-ज़द्दोज़हद है,
वो मरहम समझते हैं......
रात पार्टी थी, लोधी गार्डन में,
बीयर जमी है, घास पर,
शबनम समझते हैं..............
यहाँ अंग्रेज़ी, फ्रेंच,
बोलते हैं फर्राटेदार,
इंसानियत की बोली,
कुछ कम समझते हैं.....
चीजों से दिल लगा बैठे हैं,
पर क्या हमसफ़र को भी,
कभी हमदम समझते हैं............
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