दीमक, पीली, रत्ती भर की भी नही,
लकड़ी चुगते देखता था,
बच्चा हुआ करता था..........
कुछ वैसा ही अब देखा,
जब संवेदनशील आँखें खुली हैं,
साढे पाँच फुट की दीमक.......
सफ़ेद खद्दरधारी दीमकों की,
इम्पोर्टेड कारें,
इन्ही आंखो के आगे से गुज़रती हैं....
काले जेहन वाले सफेदपोश,
भ्रष्ट सोच और धूर्त आँखें,
दिन भर उद्घाटन यहाँ वहाँ,
फिर इन्तिहाई काली रातें......
हर कोने में मेरे देश को खोखला करतीं,
इन दीमकों के आका,
पार्लिआमेंट में मिलते हैं सिलसिलेवार,
तय करते हैं, की कैसे देश को, मिल बाँट कर खाना है और,
पेंशन, सरकारी भत्ता बढाना है और...........
इनकी नई पौध गरीबों की कमाई पर,
विदेश जाया करती है,
नई तरकीबें सीख कर,
पुश्तैनी धंधे में में लग जाया करती है.............
इन दीमकों ने,
हिन्दुस्तान के दिल में,
जमा रखा है अड्डा.......
और एक फिक्र नें मेरे दिल में...........
ना जाने कल,
मेरे भूखे हिन्दुस्तान का,
ये क्या हाल करेंगे,
बेच कर अपनी ही माँ,
माइक्रोसाफ्ट को मालामाल करेंगे..........
काश मैं हर बेईमान नेता की,
मौत की वज़ह बन सकता,
भले ही आप मुझे आतंकवादी ठहरा देते,
आजाद देश का गुलाम क्रांतिकारी,
होने की सज़ा देते.....
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