पहली बार जाना था,
बात कूट शब्दों में भी,
हो सकती है......!
जब सिखाया वो पहली तुम थीं.....!
गलीज़ सी जिंदगी के,
कुछ बरस, हथेली पे धरे,
पुर्जा पुर्जा झलक की खातिर,
हफ़्तों राहों पे रहा मैं,
और....!
वो दूसरी तुम थीं....!
मज़हबाना दायरे,
मुझे पेश कर,
जो महीनो सुरमा बहाया,
वो ख्वाबनशी तुम थीं..!
चाहतों में सौंप देना सब,
सिखाया तुमने,
पर तुम्हारा शीशा-ए-दिल.......
तोडना न जाने कब आया.......?
अपने टुकड़ों पे बिलखती,
तुम याद हो मुझे.....!
मेरी भूख को तुम से,
बेहतर भला कौन समझा होगा,
वो सैंडविच.........
अब तक याद हैं मुझे.........
बातें हैं, गलीज़ जिन्दगी है,
दायरे हैं, टुकड़े हैं.........
भूख अब भी है,
बस तुम नहीं हो............
बिना दीवारों का एक कमरा,
मैं घेरे बैठा हूँ................!
शर्मिंदा.....!
बात कूट शब्दों में भी,
हो सकती है......!
जब सिखाया वो पहली तुम थीं.....!
गलीज़ सी जिंदगी के,
कुछ बरस, हथेली पे धरे,
पुर्जा पुर्जा झलक की खातिर,
हफ़्तों राहों पे रहा मैं,
और....!
वो दूसरी तुम थीं....!
मज़हबाना दायरे,
मुझे पेश कर,
जो महीनो सुरमा बहाया,
वो ख्वाबनशी तुम थीं..!
चाहतों में सौंप देना सब,
सिखाया तुमने,
पर तुम्हारा शीशा-ए-दिल.......
तोडना न जाने कब आया.......?
अपने टुकड़ों पे बिलखती,
तुम याद हो मुझे.....!
मेरी भूख को तुम से,
बेहतर भला कौन समझा होगा,
वो सैंडविच.........
अब तक याद हैं मुझे.........
बातें हैं, गलीज़ जिन्दगी है,
दायरे हैं, टुकड़े हैं.........
भूख अब भी है,
बस तुम नहीं हो............
बिना दीवारों का एक कमरा,
मैं घेरे बैठा हूँ................!
शर्मिंदा.....!
2 comments:
बहुत खूब ... किसी के होने न होने के बीच का अकेलापन ... क्या कुछ करा देता है ...
waaaaahhhhh....
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