संजो संजो के रखता हूँ,
मुश्किलों के सहरा में जिंदगी,
शबनम की बूंद लगती है..........
कतरा कतरा मिले हो,
जब भी मिले हो,
कभी ऐंठे से, बड़े रूठे से,
जून की खुश्की,
तुम्हारे अल्फाजों से टपकती है......
तुम्हारे तंज़.....
दोयम सी मेरी अहमियत में,
चार चाँद लगा देते हैं....
मैं फिर सोचता हूँ,
ख़ुदकुशी आसां होती है की मुश्किल.....
कुछ कमीने दोस्त,
बरक्स मुझे साँसों के तारों में,
कुछ महीनो के लिए बाँध,
रफूचक्कर हो जाते हैं...
मैं फिर सोचता हूँ..........
ख़ुदकुशी की बातें............
खुद को ज़ाहिराना मज़बूत,
दिखाने की झूठी कोशिशे,
मेरी शामों को तोड़,
चूल्हे में झोंक देती हैं.............
मैं फिर ख़ुदकुशी के,
ख़याल पकाने लगता हूँ.........
अचानक कोई जाग कर,
भीतर ही चीखता है............
जियो मियां....
जिन्दगी बड़ी कीमती है........!
तो फिलहाल....
मेरे माथे भी,
मजबूरी का धब्बा लगा है........
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