Monday, June 24, 2013

मैं निकला था घर से...!

ये हादसा क्या हो गया...?

माँ से बात करने का,
लहज़ा भी लचकने लगा,
मैं तालिब-ऐ-इल्म,
निकला था घर से......!

हसरत-ओ-ख्वाहिश,
कब की गुज़र चुकी...!

फ़क़त पैरहन बाकी,
जुम्बिश-ओ-गोश्त पर,
मैं जिंदा जिस्म,
निकला था घर से...!

एहसास था, रूह थी,
मोहब्बत-ओ-जज़्बात,
मैं सही किस्म,
निकला था घर से....!

जिसने छुपाये रखा,
हर नज़र से महफूज़,
टूटा माँ का तिलिस्म,
निकला था घर से....!

रिश्तों की झीनी,
चादरों पे....!

जमी है वक्ती धूल...!
अरसा हुआ अब तो,
कुछ याद अपनों की
हो चली है मद्धिम...!

मैं निकला था घर से...!

1 comment:

N I D D A R A R T said...

plz samjhao pura samjh nhi ayia