Tuesday, June 18, 2013

ब्रांड....!

होठों के दरम्यां बेतहाशा,
भींच के तुझे...

जब भी शिद्दत से.
जज़्ब किया है.....

तो लगा है कि,
पूरी हो रही है,
हर चाहत,
हर अधूरी ख्वाहिश.....!

और हर दफा,
तेरे रुखसार पे,
आगे बढ़ चुकी सुर्खी,
मदहोश करती गई....!

जुनून-ओ-दुश्मनी,
भी निभा ली....
हर रंजिश चुका दी....!

आज फिर..!
एक सिगरेट,
जूतों तले बुझा दी....!

मगर मेरी जान,
इश्क के मानिंद...!

मैंने तुझसे भी,
वफ़ा निभाई है....!

न प्यार बदल पाया..!
न अपना ब्रांड...!

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