Wednesday, April 24, 2013

बिस्तर पे दो चेहरे..।

दोस्तों में मसरूफ कभी,
लड़की का इंतज़ार,
एक लड़का करता रहा...।

तो कभी काम में उलझे,
लड़के की राह,
एक लड़की देखती रही..!

चिंदी चिंदी वक़्त गुज़रता रहा..!
थोड़ी सी गर्मी बढ़ती रही,
न जाने क्या सुलगता रहा..!

क्यों करू मैं फोन,
उसको ही फ़िक्र नही..!
जाना था बाहर,
बताने में हर्ज़ क्या था...?

लड़का एक हाथ में फ़ोन,
दूसरे में सिगरेट ले कर,
सोचता रहा...।

दो घंटे हो चुके,
एक फ़ोन भी नही किया जाता,
उसको मेरी फ़िक्र ही कहाँ अब?

कर लेता तो,
घिस नहीं जाता....!
रेस्त्रा में अकेली बैठी,
लड़की सोचती रही.....।

कुछ ऐसे ही और,
हालातों से रूबरू हो,
हर पल थोडा और दूर,
होते रहे....!

अब वो आलम है,
कि वजह नही कोई...!

न पास आ पाने की,
न खुद को,
न उसको, समझाने की..।

कि आखिर ये दूरियां,
कब दरम्यान सिमट आयीं...!

एक ही बिस्तर पे,
दो चेहरे, आँखे मूँद,
सोने का बहाना कर रहे हैं....!

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