झूठ ही झूठ है,
धोखा ही धोखा है,
कुछ सोच कर मैंने भी,
अपने दिल को रोका है...।
तकलीफ-ओ-दर्द है,
लम्बी तन्हाई है...!
कुछ खुद किया है,
मेरी कुछ ये हालत,
दुनिया ने बनाई है...!
जिस से निभाना था,
जन्मो जनम का रिश्ता,
हर वो अपनी शै, पराई है।
चुके नही हो तुम भी,
जब भी मिला है मौका,
बेवफाई पूरी निभाई है...!
अब उड़ाता नही हूँ,
मज़ाक पीरों फ़कीरो का,
दिल दुनिया में क्यों नही लगाना,
आखिर बात समझ आई है....।
न जाने मैं हूँ कौन,
तुम हो क्या,
न जाने ये उलझने है क्यों,
न जाने कैसी ये खुदाई है...।
जब भी लगता है,
बात समझ आ गई,
जीने का सलीका आया,
और क्यों जीना है,
ये पता चल गया...।
दस्तक नई रुसवाई की,
फिर से दर पे आई है..।
न जाने मैं हूँ कौन,
तुम हो क्या,
न जाने ये उलझने हैं क्यों?
न जाने कैसी ये खुदाई है.....?
1 comment:
खुद से किया वार्तालाप ... कई बार कुछ समझ नहीं आता ... पर होता जरूर है ..
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