Friday, April 26, 2013

रिश्तों की वादियों में...।

जो तेरा भरोसा था,
पीछे खड़ा,
फौलाद था मेरा सीना...।

आज तेरे बिना, मात रूबरू है,
और ये मुश्किल, तेरे भरोसे से,
बड़ी है शायद....।

फिर आज की रात,
नम है, सर्द है,

रिश्तों की वादियों में,
गफलतों की बर्फ,
पड़ी है शायद....।

कतरा कतरा बह रहे हैं,
वजूद-ओ-चश्म-ऐ-नम तेरे मेरे,
जिंदगी एक मर्तबा फिर,
दोराहे पे,
खड़ी है शायद....।

अजब सी बुनियाद पे,
खड़ी थी हमारे,
रिश्ते की दीवार...।

झटका तो लगा है कोई,
टूटने की आवाज़ आई है,
गिर पड़ी है शायद....।

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