Friday, April 26, 2013

गोया मोहब्बत है.....!

तुम से छुप के,
हो जाती थी,
बाज़ दफा मयनोशी..।

सामने देख कभी तुम्हे,
फेक दिया करता था,
सिगरेट.....।

गोया मुहब्बत न थी,
हौव्वा था....।

अब सुबह से शाम तक,
सुरूर ही सुरूर है..।

तुम्हे याद करता हूँ,
तो हथेली पे ही,
बुझाता हूँ सिगरेट....!

बड़ा आराम आता है,

हकीम कहते हैं,
चँद रोज़ है जिंदगी बची,

न तो खुल्लम खुल्ला,
जामनोशी पे है काबू..।

न सिगरेट ही गिरती है,
हाथ से, छटपटा कर...।

हमारे हौव्वे के जनाज़े,
कब के उठ चुके.......!

No comments: