छुट्टी थी, देर से उठा, फिर सुबह से लैपटाप पर कोई न कोई फिल्म देखे जा रहा था
! जिस मोहल्ले में रहता हूँ वह मुस्लिम बस्ती नहीं है थोड़ी देर पहले अचानक पता चला
कि किराए के कमरों और घरों में कई मुस्लिम परिवार रहते हैं.........!
मुझे कैसे पता
चला..........?
पिछले कई महीनो में सिर्फ आज सुबह से ही कुछ बकरों के मिमियाने की करुण आवाज़
सुने दे रही है......आवाज़ कर्कश से ज्यादा करुण है.... जो शायद दोपहर बाद तक खामोश
हो जाएगी........आवाज़ भी इतनी करुण कि उसमे में छुपा डर मुझे साफ़ सुनाई दे रहा
है.....कौन कहता है की आने से पहले मौत का पता नहीं चलता....आज मुझे पता चला जानवर
भी जानते हैं...!
अब हर बाप अपने बेटे को कुर्बानी का मतलब समझाते हुए बेटे और खुद को तैयार
करेगा! अक्सर हर्षोल्लास से बेहद खुश बच्चे इस पल का कई महीनो से इंतज़ार कर रहे
होते हैं.....जब उनके सामने पहले कुर्बानी होती है...!
सब रस्मो रिवाज पूरे करने के बाद बकरे को लिटा दिया गया है....बच्चा बहुत खुश
है...! उसके लिए ये मदारी के किसी करतब से कहीं कम नहीं है....! पिता ने छुरी पर
धार पहले ही रख ली थी.....थोडा नापतोल कर बकरे की गर्दन पर रख कर उसने दुआ पढ़ते
हुए बकरे के गले पर फेर दी........मुह बंधे बकरे की छटपटाहट और गले से बहते खून को
देख कर बच्चा सहम रहा है.......३-४ मिनट तक बकरा छटपटाता है........और बच्चे के
भीतर का इंसान भी......जो उस से पूछता है कि अगर कुर्बानी हम दे रहे हैं.....तो
दर्द इस बकरे को क्यों सहना पड़ रहा है......?
खैर........सर उतारे जाने के बाद भी बकरे के जिस्म में जुम्बिश है.......जिस
को देख कर बच्चे को झुरझुरी छूट रही है.......उसे मटन बेहद पसंद रहा है.....पर आज
ही उसे पता चला है कि दूकान से मटन उसकी थाली तक आने में कितनी जुगुप्सा इसमें भरी
है...!
पिता बच्चे की ओर देखे बिना बड़ी हुलस के साथ बकरे को एक तसले के ऊपर उल्टा
टांग उसकी आंतें और खाल निकाल देता है....इस विजय भाव से जैसे ही वो बच्चे की ओर
मुड़ता है उसे बच्चे की आँखों में वो सवाल दिख जाता है....पिता मन ही मन उस उस सवाल
के लिए खुद को तैयार कर रहा है!
मटन के टुकड़े किचन में चले गए हैं, बेटा सदमे से पूरी तरह उबर नहीं पाया
है.........उधर एक जीव की आत्मा प्रकृति में विलीन हो गयी है जिसे ये भी नहीं पता
कि उसकी जान क्यों गयी है...!
बच्चे ने सवाल अपने पिता के सामने रख दिया है.......पिता अपने संवेदनशील बच्चे
को संवेदनाघाती एक कहानी सुना रहा है......एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम का
इम्तेहान लेने के लिए उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज़ कुर्बान करने को कहा....तब हज़रात
इब्राहीम ने अपने सबसे अज़ीज़ बेटे इस्माइल को कुर्बान करने का फैसला किया..जैसे ही
वो कुर्बानी देने लगे अल्लाह ने बेटे की जगह एक दुम्बे (भेड़) को रख दिया और खुश हो
कर हज़रत को बताया कि ये सिर्फ एक इम्तिहान था....और वो बेटे की जगह दुम्बे की
कुर्बानी दे दे...!
बेटे ने पिता से सवाल पूछ लिया.........तो आपको मेरी कुर्बानी देनी चाहिए
थी.....? अल्लाह मियां मेरी जगह दुम्बे को रख देते....?
लाजवाब बाप अल्लाह पर लाये आपने ईमान को तोलता रहा.......बेटा सामने बैठा और न
जाने क्या क्या बोलता रहा..!
शाम से मोहल्ले में अजीब सा सन्नाटा पसरने वाला है....बकरों के मिमियाने की
आवाजें कम होने लगेंगी...बच्चों का उल्लास सवालों में बदलने लगेगा......!
पीछे बचे सन्नाटे में रह जाएगा........नालियों में बहता ताज़ा खून, ताजे कटे
मांस की अजीब सी महक जो मिल मिल जायेगी कढाईयों और भौगौने में पक रहे मटन के
खुशबूदार मसालों की महक से....!
शाम को ही कुछ लोगों के घरो के बाहर कसाई खड़े हो कर उतरी हुई खालों का मोल भाव
कर रहे होंगे...!
आवाजें थमने लगी हैं........मेरी बेचैनी बढ़ने लगी है.....आज शाम मुझसे खाना
नहीं खाया जायेगा....!
रात भर दिमाग में हथौड़े बजते रहेंगे.....और मैं सोचता रहूँगा.......संस्कृति
और धर्म इतने स्वार्थी क्यों होते हैं....?
बकरा ईद मन गई है....मेरे जेहन में कई सवाल रह गए हैं....!
क्या बाप को अल्लाह पर अपने ईमान की असल तोल मिल गयी है...?
क्या बेटे को उसके सवालों के जवाब मिल गए हैं........?
क्या बच्चे के भीतर के इंसान को एक रिवाज़ और उसके बाप ने मिल कर थोडा सा मार दिया
है....?
कहीं ऐसा तो नहीं कि दाढ़ को लगे मटन के स्वाद ने इस रिवाज़ को पक्का करने में
अहम् भूमिका निभाई है...?
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