Sunday, October 13, 2013

तुम धन्य हो रावण......!

एक और दशहरा,
एक और रावण,
या बस एक बहाना....

राम से कहने का,
कि हम भी जलाते हैं रावण,
पीटते हैं लकीर.......!

और.........राम?
पीट रहे होंगे,
अपना सिर..........!

सोच कर कि मैंने तो,
समाप्त कर दिया था,
रावण को सतयुग में ही...!

ये नासमझ इंसान,
बनाता है रावण.........!

सदियों पुराने अपने
दंभ, झूठे गर्व की,
वर्षगाँठ मानाने को....!

हर वर्ष रचता है
स्वांग खुद को,
राम बराबर दिखाने को...!

हनुमान और जामवंत को,
आती होगी लज्जा,
जिनके नाम चंदे से,
आती है पंडालों में शराब........!

वरना चिरंजीवी हनुमान
कभी न कभी,
दर्शन तो देते........!

वानरसेना भी,
होगी बड़ी लज्जित,
देख रामलीलाओं में,
फूहड़ नृत्य.........!

जामवंत शर्मिंदा यूं हुए होंगे,
कि इच्छा जताई होगी,
सशरीर गौ लोक जाने की......!

रामलीला ने,
कितने राम दिए समाज को.....?
राम ही जाने......!

पर समाज ने जने हैं,
कोटि कोटि रावण.......!

अन्यथा......

दिल्ली, पटना, कानपूर,
मुंबई, हैदराबाद, और,
पूरे आर्यावर्त में,
सीताओं का यूं...!
हरण न होता..........!

जब एक था रावण,
तो एक थे राम
हरा भी दिया था,
लेकर पूरे विश्व का सहयोग....!


आज दस कोटि हैं रावण,
और राम..........?


जब भी जलता है रावण,
चिंगारियों में बदल,
समा जाता है,
मोहल्लों में,
युवाओं में...........!

ले रहा है बदला,
सहस्रों वर्षों से........

फिर जलता है, और बढ़ता है,
और जलता है, और बढ़ता है...!


मजेदार बात तो ये है,
हज़ारों बार जलाने के बाद भी,
प्रतीकात्मक.....!!!!!!

बुराई आज भी सिर्फ बढ़ी है.........!
मरी नहीं है..........!

धन्य हो रावण,
राम को अपनी पुण्यतिथि पर,
तुमसे बड़ी ईर्ष्या होती होगी..........!

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