Thursday, November 5, 2009

नई शुरुआत...........

यूँ निचोड़ ली,
जिस्म से जान उसने...
जाते जाते कह गया......
ये आखिरी मुलाकात थी...

इधर जो रही थी,
जनाजे की इब्तेदा......
उधर.......
जोड़े और मेहंदी की बात थी.......

हम उस पल को ही,
जिन्दगी मान जीते रहे.......
जो उसके लिए,
आम सी इक बरसात थी.......

इन्तहा सितम की,
हमने तब जानी, जब वो बोला,
गर बेपनाह मोहब्बत की,
तुने क्या नई बात की...........

आख़िर लगा ही लिया,
मौत को गले,
इस तरह हमने,
नई जिंदगी की शुरुआत की..........

2 comments:

वर्तिका said...

bahut khoobsoorti se dard ko piroyaa gaya hai tanz ke saath..... hits straight nd hard....

"यूँ निचोड़ ली,
जिस्म से जान उसने...
जाते जाते कह गया......
ये आखिरी मुलाकात थी...

इन्तहा सितम की,
हमने तब जानी, जब वो बोला,
गर बेपनाह मोहब्बत की,
तुने क्या नई बात की.........."

Aadii said...

I usually don't like sad poems, because bahut padh chuka hoon is tarah ki kavitaayein.. lekin aapne jo chhoti chhoti baatein itni khoobsurati se bayaan kari... ki agar main comment nahin karta to wo insaaf nahin hota itni sundar rachna ke saath :)