काज़ीरंगा की धुंधली सुबहों में
चहकते जो परिंदे
हरियाली चादर पे
फिरती नाचती प्रकृति
जन्नत का होता भरम
तिबा मिसिंग कोरबी
और बोडो संग वैष्णव
थिरकते मचलते नाचते
झंकृत हो करताल
और बजे मिरदंग
कहानियाँ सुनाती हैं
दीवारें राज़ छुपाती हैं कम
सीधा था सादा था
आज भी मासूम है
सदा के जैसा असम
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