Friday, April 8, 2016

बोध

रुई से धवल बादलों को तुम
सहलाते होगे....
महसूस करते होगे नरमी
और गुदगुदा एहसास

होराइजन की नीली छटा को निहार
पुलकित होते होगे

सुनहरी किरणों को समेट कर
अंजुली में अपनी
उछाल उछाल कर
बाल क्रीडा का आनंद
लेते ही होगे...!

वो जो आयनमंडल से लगी
बादलों के ऊपर की
निर्मल हवा है
भर के अपनी साँसों में
मुग्ध होते होगे

चुटकी बजाते ही
सब ज़हर हो जाता होगा
उड़नछू...
ईश्वर जो हो...!

कहो हम क्या करें
जो हमने अपनी
बगिया उजाड़ी है स्वयं

अब एक दम भर
सांस के लिए घुटते हैं
शहर शहर गाँव गाँव..!

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