Thursday, September 17, 2009

ऐसा क्यों है.............?

मेरे जेहन में सवालों का एक सिलसिला कुछ रोज़ से दरिया बना हुआ है.............


एहसान कर दिया,
मेरे फलक पे आ के,
पर मेरा चाँद, आधा क्यों है.......?

कब गुरेज़ था सहने से मुझे,
पर ये तो बता,
मेरे ही हिस्से, दर्द ज्यादा क्यों है.........?

जिन्दगी किए जा रही है,
मुझसे वादे पे वादे,
फिर ये खुदकुशी का इरादा क्यों है...............?

कह दे की अब तू ही खुदा है मेरा,
या ये बता........
हंसाता है, फिर रुलाता क्यों है.............?

या तो हर दफा राह भूला हूँ,
या ये जहाँ ही तेरा हो गया,
जो भी मिला, हर मुसाफिर,
तेरे ही घर का पता बताता क्यों है..............?

मेरे जिस्म के बिखरे हिस्सों का,
बनाया जाता है ढेर, बाद-ऐ-कत्ल,
फिर हर कोई, ढेर पे एहसान जताता क्यों है............?

प्यार की शिद्दत,
नज़र आती है, जब आंखों में,
तो हर शख्स मुझे आजमाता क्यों है.............?

माना की क़यामत थे,
कुछ लम्हे हमारे,
पर तेरी याद की दाना आहट से भी,
मेरा हर रंग थरथराता क्यों है..................?

रौशनी देख खुश हो...............?
नाचो गाओ दोस्तों,
पर ये भी पूछो,
गौरव आख़िर अपना घर जलाता क्यों है............?

3 comments:

Sudeep Dwary said...

Waah Gaurav Ji bahut achchhe! ... ehsaason ko badi khoobsurati se pesh kiya hai aapne .. aur aakhiri line pe kya kahun mai ..

रौशनी देख खुश हो...............?
नाचो गाओ दोस्तों,
पर ये भी पूछो,
गौरव आख़िर अपना घर जलाता क्यों है............?

bahut khoob .. badhai!

Mumukshh Ki Rachanain said...

हर शख्स मुझे आजमाता क्यों है.............?

दुनिया से विश्वास जो उठ गया है...........

आपकी रचना बहुत ही अच्छी बन पड़ी है, गहन भावों से युक्त है........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Murari Pareek said...

वाह उम्दा गौरव भाई !!! है जमाने से इतनी शिकायते फिर भी ए "गौरव" नहीं जताता क्यों है |