Friday, August 28, 2009

एक नया सुखन......

इक सुखनवर कहा करता था.....
क्या बुरा था मरना जो एक बार होता...........

और एक हम........

इस कदर है पसंद मरना....
काश ये बार बार होता...........

एक तड़प तो देख ली,
तुझसे जुदा हो कर.........

वो दर्द भी देखते,
जब कोई खंज़र,
वाकई जिगर के पार होता.........

लुत्फ़ बढ़ जाता शायद,
और एहसास-ऐ-दर्द भी,
जब तेरे ही हाथ,
वो वार होता...........

2 comments:

Mumukshh Ki Rachanain said...

और एक हम........

इस कदर है पसंद मरना....
काश ये बार बार होता...........

एक तड़प तो देख ली,
तुझसे जुदा हो कर.........

वो दर्द भी देखते,
जब कोई खंज़र,
वाकई जिगर के पार होता.......

बेहतरीन अहसासों की बेहतरीन भावव्यक्ति.
शब्दों का नपा-तुला संतुलित पर, बेहतरीन प्रयोग.
बधाई.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

waah.......waah.....kamaal hai.....!!