Thursday, August 21, 2008

निर्झर


घटना वही पुरानी है,
पर अनुभव नया.....
समय फिर समय पथ पर गुज़र गया.........

ये निर्झर यूँ ही बहता रहेगा...........
प्रारब्ध की अप्रतिम कहानी,
कहता रहेगा.........

समय की कोख से,
कुछ और पल उतरेंगे.......
जीवन का थोड़ा सा जीवन,
और कुतरेंगे...........

इस सम्यक धरा - धारा में,
बस स्मृति शेष रहती है........

अस्पष्ट अकथ्य के,
कुछ भ्रंश भी मिल जाया करेंगे...........
जब भी गहरी पैठ लूँगा.........

प्रलय हो जब भी ये लय टूटे,
प्रश्नचिन्ह लगे हर रचना पर,
जब भी ये वलय टूटे..........

मैं चिंतन वन में
सुप्त, संज्ञा विहीन.........
चेतना हीन............
स्वयं में स्वयं को खोजता...........
मैं दिग्भ्रमित, मैं पथिक........