Saturday, August 16, 2008

मैं जिन्दगी का आइना हूँ.............


जिन्दगी की चमक देखी,
खुश्बू देखी, खूबसूरती भी..........

मासूमियत की महक देखी,
नन्हीं सी सितारा आँखें,
साँसों में मोहब्बत की नमी..........
तोतली, पर बेपनाह प्यारी बातें...........

ऊँगली पकड़, डगमगाती.......
चलने की कोशिश करती......
इठलाती, खिलखिलाती.........
और मुझमें उमंगों का समंदर भरती.......

मैं जिन्दगी का आइना हूँ, बिखरने न देना........
कहती रही..............
एक नन्ही बच्ची, मेरी गोद में खेलती रही.........

मैंने नाक से ऊँगली छू ली, तो हंस दी...........
यूँ तो शाम हो चली है पर,
मैं अब भी खोया हूँ, उलझा हूँ,

उसकी मासूमियत में,
अपनी जिन्दगी की तमाम सख्तियाँ भूल कर..................

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