
दो पल रुकता हूँ,
तो जेहन में उभर आते हो,
हाथों में ले कर हाथ, कहते हो........
बस कुछ कदम और,
जैसे जिन्दगी फ़िर से देती है,
कुछ साँसे उधार..............
चला आता हूँ तुम्हारी ओर,
पर छलावा बन कर,
फिर से क्यों दूर हो जाते हो................
जीवन के किसी अगले मोड़ पर खड़े मुस्कुराते हो,
तो रुक जाओ न,
बस दो पल
छू लेने दो, वो नाज़ुक होंठ,
इस से पहले, कि प्यास हद से गुज़र जाए,
और जाम-ऐ-जिंदगी, छलक जाए..............
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