
टूटा भी नहीं बिखरा भी नहीं,
बस चटका सा है,
शीशा-ए-दिल............
एक उसके चले जाने से,
सूनी है मेरी महफिल.........
लाखों हैं पर,
कोई तेरा जवाब नहीं बन सकता.......
सितारे मिल भी जाएँ.......
तो आफताब नहीं बन सकता.........
सोचता हूँ,
वक़्त का भी, ये क्या असर है.......
मुझे तो है, पर क्या तुझे भी..........
मुझे खोने का डर है.......
बस चटका सा है,
शीशा-ए-दिल............
एक उसके चले जाने से,
सूनी है मेरी महफिल.........
लाखों हैं पर,
कोई तेरा जवाब नहीं बन सकता.......
सितारे मिल भी जाएँ.......
तो आफताब नहीं बन सकता.........
सोचता हूँ,
वक़्त का भी, ये क्या असर है.......
मुझे तो है, पर क्या तुझे भी..........
मुझे खोने का डर है.......
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