Sunday, February 3, 2008

फिर वही शाम

वो एक शाम मेरे साथ बिताने आये है,
मेरी रूठी जिन्दगी को मना कर लाये हैं,

इस्तकबाल करूं तो लफ्जों का टोटा है,
क्या इल्म था ऐसा भी होता है,

बेपीर दर्द दे गया था,
दवा लाया है,
जमिन्दोज़ के खातिर,
हवा लाया है।

अब के सावन में
बूंदों में नयी बात होगी,
दिल बस तू सोच,
क्या खूबसूरत मुलाकात होगी,

मेरा हम्नफ्स मेरा हमराह,
मेरी जिन्दगी साथ है,
वही सालों पहले की रात है,


कुछ भी कर गुज़र जाऊं,
इस दो पल की मुलाकात के लिए,
दोस्तो मुझे मुबारक बाद दो
इस नयी शुरुआत के लिए.

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