Sunday, February 3, 2008

कुछ असंभव भी

सफलता असफलता जब मुँह खोलती हैं,
कुछ कटु, कुछ मधुर बोलती हैं,

समर्थ और असफल की वाणी
समान
सब संभव है,

यह तो प्रयास की सार्थकता।

असमर्थता को मैंने भी जाना है,
मेरी अंतरंग मित्र है,
मुझे मुँह चिढाती,
पर बरसों से साथ है।

मुझे रुलाती भी है,
फिर सहलाती भी है,
रग रग दुखा कर,
मुस्कुराती भी है।

न बनने देतीं है,
न बिखरने देती है,

साहस भी लचीला हो चला,
न वो दुस्साहस बना,
न ही हुआ मैं निराश,

उम्मीद और नाउम्मीदी,
के झूले पे मैं झूलता रोज़,

तो मान लिया मैंने,
किस्मत भी है कुछ,

सब है संभव,
तो कुछ असंभव भी।

No comments: