Thursday, December 18, 2025

रात की लम्बाई

वक़्त.... अँधेरा...!

रात की लम्बाई,

उस से पूछो,

जो इश्क में पड़ा हो,

और इज़हार न कर सका....!


इंसान नहीं, ख्याल है वो,

जज़्बा कोई,

जिसे बयां कोई,

फनकार न कर सका....!


और उस से मेरे,

दिल की लगी का,

अंदाजा यूं लगा लो,

उसने मुझे मेरी ही,

मौत की दावत दी, और मैं

इनकार, न कर सका..!!


होता कोई और तो,

सम्हाल लेते खुद को,

जिसका भी दिल उसने तोडा,

वो फिर किसी पे,

एतबार न कर सका..!

नया चलन

तुम क्यों आई हो?

 उपेक्षा की सूखी लकड़ियों पर 

सब भावनाओं को 

तिरोहित कर दिया था मैंने

आह, कि सब आर्द्र हो गया


ज्वार जो काट देता था 

मेरे अस्तित्व के बांधों को 

और जो लुप्त हो गया था 

अंतहीन समय में कहीं

लौट आया है 


सूर्योदय

जो कभी प्रणय से

द्वंद तक रूपांतरित

हो चुका था

फिर क्यों होने लगा है?


और जिन कपाटों पर 

मैंने धूल जम जाने दी,

उनके खुलने की

आहट डरावनी है


हृदय और उदर के मध्य 

फिर से पीड़ा हो रही है कहीं

और इस बार इसमें

असहजता भी है


निस्संदेह तुम

जीवन की बयार हो

मेरे होने और न होने

के आर पार हो


मुझे डर लग रहा है,

उलझन है, उल्लास है,

उत्साह है, अपेक्षा है,

और फिर से डर है।


तुम क्यों आई हो?