Thursday, May 1, 2025

मैं वक्त हूं..!

मुझे चाहना, और पा लेना,
दो अलग अलग बातें हैं।
इक मुकाम हूं मैं,
सब के हिस्से,
आसानी से नहीं आता।

इल्म हूं, सब्र की इंतहा हूं,
सबक हूं, इंतजार हूं,
आता हूं,
पर आसानी से नहीं आता।

ठहरो, परहेज करो,
वक्त दो, तरजीह दो,
मुश्किल से आता हूं,
आसानी से नहीं आता।

मुझे पाना है तो,
उम्रदराज होना पड़ेगा
तजुर्बा हूं
जो जवानी से नहीं आता
आसानी से नहीं आता।

हक़ हूं, जायदाद नहीं
लड़ने से मिलता हूं,
बदगुमानी से नहीं आता
मुश्किल से आता हूं,
आसानी से नहीं आता

तुम्हे मेरे इंतजार की,
कद्र करनी होगी,
मैं, कायदा हूं,
मेरी अपनी चाल है,
मैं नाफरमानी पर नहीं आता।

मैं वक्त हूं,
आसानी से नहीं आता..!

Monday, April 28, 2025

परिधि

विभेद जिसे समझने में युगों लगे,
अनंत और शून्यता
मिश्रित कर दी हम ने..!

यह हास्य का नया आयाम है
कि अपर्मिति की सीमा,
तय की हमारी मूर्खता ने..!!

जब लाभ हानि प्राथमिक,
मानवता गौण हो गयी..!

जब व्यथा और घृणा,
ससंचित होने लगे
और प्रेम व्यापार हो गया..!

जब सब त्रिकोणमिति शुष्क है,
तो तुम्हारी आद्रता कैसे,
संरक्षित हो सकी?

कैसे भाग्य के समीकरण ने,
विस्मयकारी हल दिया है?

कैसे क्षेत्रफल,
बढ़ गया अकस्मात्,
भाग्य का?

कैसे विन्यासों को,
आवृत्तियों में,
पुनर्गठित किया विधि ने?

कैसे? मैं केंद्र,
जीवन वृत्त, और
"परिधि" संसार हो गया..!