Monday, May 2, 2016

जागें फिर से...

चलो फिर से
आज़ादी की कहानी लिखें

लिखें तो नयी लिखें
क्या नए मुलम्मे में पुरानी लिखें

जहाँ मज़हबों की आंच
ठंडी पड़ी है, ऐसी बारिशों की
शाम सुहानी लिखें

तुमने अपनी जवानी ज़ाया कर दी
मंदिर मसाजिद के फेर में
हम क्यों उसी लकीर पे
अपनी जवानी लिखें

थोडा आबे जमजम लिखें
थोडा गंगा का पानी लिखें
फिरकों को दफ़न करो
आओ कुछ रूहानी लिखें

निकलो सियासती बुज़ुर्गो
हमारी संसद से
हटो के हम आते हैं
नज़र ऐ वतन नौजवानी लिखें

तुमने कैसे चूसा है खून सियासत में
बता देंगे अब, और ये भी
के बस इक अम्न खातिर
कितनी हमने ख़ाक छानी लिखे

दंगों के दहकते शोलों को हटा
नरम गोद दें माओं को
जख्म ले के बहनों के
किस्मतों में उनके रातरानी लिखें

उठ के बच्चा कोई
न बिलखे दूध खातिर
न फिक्रमंद हो अवाम भूखे सोने की
कभी तो ऐसी सुबह सुहानी लिखें

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