Sunday, November 23, 2014

टुकड़े

जब तुम यादों के,
कंदील बना कर
आँखों के झरोखों में
रखती थीं

मैं बूँद बूँद
रौशनी बन कर टपकता था।

जब तुम बिखरे कपड़ो के साथ,
मिलन की सलवटें
सम्हाल रही होतीं,

मैं कहीं तकिये पे,
आंसू के दाग सा
मुख़्तसर हो जाता था।

तुमने टूटी पायल के
हिस्से बटोरे जब
और बिखरे घुंघरुओं में से एक
तुम्हारे पैर लग
छिटक कर
दूर जा गिरा.....

मेरी एक ठंडी सांस
टूट कर दो टुकड़े हो गयी

परदे को पकड़े खड़ी
जो गिन रही थी
दो छल्लो की कमी

ख्यालों के बादल का
एक नाज़ुक टुकड़ा
मेरे तुम्हारे दरम्यान
फना हो गया।

डेस्क पे अपनी उँगलियों से
कर रही थीं जब तुम
करीने की आवाज़

तुम्हारे नाखूनों से निकल
एक धागे में
बड़ी दूर तक जा रही थी

और हर कदम पर
खामोशी की चादरें
उतार कर खड़े हो गए
उजले झुरमुट

अंगड़ाई ली तुमने
शबनम का कतरा फलक से
टूटा....
गिरा....
और अपने वज़ूद पर
इतरा गया।

एक मिसरा तुमने
गुनगुनाया।
यहाँ मेरे आफिस तक
तरन्नुम के बादल आये हैं।

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