चूड़ियो के टूटने की,
कुछ शोर की,
रोने कराहने की,
आवाजें आई हैं...!
शायद फौजी के घर
चिट्ठी आई है..!
दो दिनों से मरघट की,
उदासी है गली में...!
उधर भी जरूर गई होगी..!
सरहद से फिर इस बार,
कई घरों में मिटटी आई है....!
इक जोड़ी बुज़ुर्ग आँखों में,
बस सवाल हैं...!
क्या हर सुख का,
हक बस तुम्हारा,
जान देने की कसम
सिर्फ मेरे कुनबे ने उठाई है...?
सरहद से....!
कई घरों में मिटटी आई है।
कुछ शोर की,
रोने कराहने की,
आवाजें आई हैं...!
शायद फौजी के घर
चिट्ठी आई है..!
दो दिनों से मरघट की,
उदासी है गली में...!
उधर भी जरूर गई होगी..!
सरहद से फिर इस बार,
कई घरों में मिटटी आई है....!
इक जोड़ी बुज़ुर्ग आँखों में,
बस सवाल हैं...!
क्या हर सुख का,
हक बस तुम्हारा,
जान देने की कसम
सिर्फ मेरे कुनबे ने उठाई है...?
सरहद से....!
कई घरों में मिटटी आई है।
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