Wednesday, August 29, 2012

मेरे तुम्हारे रिश्ते जैसा..............!

,
देखो तुम फिर याद आ रहे हो,
मुझसे मत कहना,
कि लिखा मत करो .......!

खुद ब खुद छलकती है, स्याही,
भीगते हैं, कागज़ .......!

मुझे वैसे भी,
रंगीन कागजों को,
सिरहाने रख सोने की,
आदत ही कहाँ है .......?

जला ही देता था,
पर तुम .........!
संजो संजो रखते रहे ......!

ये  पेन तुमने ही पिरोया है,
उँगलियों में मेरी,
अब जुदा करते बनता नहीं ........!

यूं तो अरसा गुज़र गया,
पर जब तब,
बरबस खींच देता है, अक्स,
ये नामुराद न जाने कैसे कैसे,
सादगी से लिपटे सफ़ेद पन्नो पे ......!


तुम जब भी,
मुझे झूठा कहतीं,
मैं मन ही मन सोचता ....!

यार तुम से तो कभी नहीं कहता ...........!

ये कमबख्त पेन,
पुरानी सब सच्चाईयाँ खोल रहा है,

इस नज़्म में भी ढीला है कुछ,
अब ..........!
मेरे तुम्हारे रिश्ते जैसा ............!

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