Monday, March 14, 2011

जब से बिछड़े हो........

मेरे अंतस में रचे बसे....
रंग ढूंढता रहा.......
एक, बस एक ..........
अन्तरंग ढूंढता रहा..........

कभी फिरोजी कभी सुर्ख.....
तो कभी गुलाबी का अकेलापन मिटाने को........
तुम्हारा संग ढूंढता रहा...

सहर तो कब की ढल चुकी.....
तुम्हारी हर ताज़ा याद ले कर......
ख्वाहिशों पे लगी पपड़ी कुरेदता रहा.....
तुम्हारे नाम की कोई ज़ंग ढूँढता रहा.......

तुम्हे शिकायत थी.......
मुझे जीने का तरीका नहीं आता.......
तुम्हारे बाद, वो तरीका बस दो पल जीने का...........
ये बेढंग ढूंढता रहा................

सुर, लय, ताल और अंदाज़ ढूँढता रहा,
जिन्दगी गुज़र गई.............

जिन्दगी का फकत,
तंग सा रंग ढूंढता रहा...........

जब से बिछड़े हो........
बस तुम्हारा संग ढूंढता रहा...........

2 comments:

VIVEK VK JAIN said...

aapki lines udaas h.....

VIVEK VK JAIN said...

aapki lines udaas h.....