क्यों देख लेते हो वो,
जो न कभी था, न होगा......?
क्यों सुन लेते हो वो आवाजें,
जो कभी जन्मी ही नहीं........?
क्यों तिलांजलि देते हो,
अपनी इच्छाओं की....?
जानता हूँ............!
अभिनय की ऊचाईयां पायी हैं......!
ख्यालों और बद्ख्यालों के,
रेशमी धागों से,
बुन रहे हो ये जो,
अपनी खुद की क़ैद............!
डरता हूँ...........!
दम न घोंट दे तुम्हारा....!
तुम्हारा ये स्वरचित कोकून.........
क्या यकीं हैं तुम्हे....?
की एक रोज़ तितली बन कर,
निकल ही आओगे............!
फूलों को उनकी अहमियत बताने........!
तुम्हारा एक सुनहरी,
रेशमी धागा मुझसे भी जुड़ा हैं,
और एक गुलाब मेरे पास भी हैं..............!
कोकून से बाहर निकलोगे,
तो याद आ ही जायेगा......!
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