Sunday, May 31, 2009

यकीन........

दूसरों की राह पे चला नही,
पर मैं भी तो कोई भला नही..........

गैरों के हाथ में देख,
खूबसूरत हाथ,
क्या कभी मेरा दिल जला नही...........?

मेरे पास बस इतने ही लफ्ज़,
बस इतनी ही बातें,
कुछ उजले दिन, कुछ अँधेरी रातें.......

शायद तुम मेरे साथ हो,
तो फिर तन्हाई क्यों है.........?
यूँ साथ हो के, जुदा जुदा हो........
मेरे साथ ये परछाई क्यों है.........?

क्यों रात भर नींद नही आती मुझे,
क्यों रात रात भर मैं करवटें बदलता हूँ,
कभी तकिया बदलता हूँ,
कभी उसकी सलवटें बदलता हूँ................!

जब कुछ भी पेश-ऐ-नज़र नही होता,
तब भी मेरी निगाहों ने,
तुझे देखा है............
अंधे यकीन को लिए जिए जाता हूँ,
इक बिरहमन ने कहा था,
मेरे हाथ में तेरे नाम की रेखा है................

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