यूँ आधी रातों को उठ जाना,
तुम्हे भुलाने की कोशिशें करना,
कोहरे से ढकी सड़कों पे,
भागना बदहवास............
क्या समझोगे कभी..............?
कभी भीड़ के बीच खड़े हो कर,
कभी पानी की धार के नीचे,
कभी पी कर बेहिसाब,
कभी मन्दिर-ओ-मजार के पीछे..........
तेरी दिल तोड़ने वाली बातों को,
भुलाने की वो कोशिशें............
काश ये दर्द तुम भी जानो............?
तुम्हे क्या पता,
कितना बदला था,
मैंने ख़ुद को, बस तुम्हारे लिए.......
अब हर बात कहने से पहले,
सोचते और बस सोचते रहना........
चुप रहना भी सीख लिया मैंने............
क्या तुम्हे महसूस हुआ कभी.....................?
आईने के आगे खड़ा हो कर देखूं,
वो पुराना अक्स नही दिखता,
ये तो कोई और है,
जिसे बनाया है तुमने,
और फिर मैंने.........मिल कर..........
हैरान भी हूँ, परेशान भी,
के जीना तो है मुझे..........
पर हर रोज़ मरते हुए...................
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अब हर बात कहने से पहले,
सोचते और बस सोचते रहना........
चुप रहना भी सीख लिया मैंने............
क्या तुम्हे महसूस हुआ कभी.....................?
सुंदर रचना......... दर्द से सराबोर....
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