Wednesday, May 27, 2009

यूँ भी हो...........

ख्यालों में अपने,
एक सफ़्हा मैं यूँ भी लिखूं.........
के दो पल को तू मैं हो जा,
और मैं तू हो सकूं...........

अलमस्त फुर्सत से,
मैं भी पहचान निकालूँ,
दिल के सारे,
दबे अरमान निकालूँ.........

हसरतों के माथे,
पसीने की बूंदे न हों.........
न पेशानी पे सलवटें.........

एक रात कोई ऐसी भी गुज़रे,
नशा हो तेरा बेहिसाब,
फिर देर-ओ-सहर तक न उतरे...............

कभी चाँद यूँ भी हो रोशन,
के भरी दोपहर तक न उतरे.............

1 comment:

वर्तिका said...

wow! रूमानियत से भरी हुई , सरल सुंदर रचना....