Wednesday, May 27, 2009

युग्म...........

बस रुकी तो....डिवाइडर पर लगे पेड़ों पे,
नज़र पड़ ही गई,
लोहे के तारों की बाड़ में घिरे,
नन्हे से पौधे को देखा
सुकुमार, कोमल, सुंदर........
और जंग लगे लोहे का संरक्षण..........
युग्म विचित्र सा लगा.......

मुझे विचारमग्न देख,
बाड़ को हँसी आ गई,
जैसे पापा हँसते थे.................
मैंने कारण पुछा तो,
एक मुस्कराहट का,
प्रत्युत्तर मिला...........

बस चल दी तो,
शरारती नन्हे पौधे ने,
शुभविदा कहा..................

पाँच साल बाद फिर बस रुकी है,
ठीक वहीँ,
पर दृश्य में सिरे से परिवर्तन है..........
बाड़ जर्जर हो चली है............
और यौवन था उस पौधे पर..........

पौधे ने अभिवादन किया,
मैंने विश्लेषण कर लिए स्थिति के........

परीक्षण किया युग्म का........
युवा पौधे की शाखों ने,
बाड़ की रिक्तियों से निकल कर,
उसे थाम रखा था.......पूरी मजबूती से......

युग्म में मुझे,
पिता पुत्र का रिश्ता दिख गया........

बस फिर चल दी है,
पौधे का शालीन सा अभिवादन आया है,
जर्जर बाड़ को,
थामे रखने का वादा किया है उसने.................

2 comments:

वर्तिका said...

वाह! क्या निगाह और उसकी व्यापकता के हम तो fan हो गए.... कितनी खूबसूरती से आपने एक आम से दृश्य को नए मायने दे दिए...

Rajat Narula said...

परीक्षण किया युग्म का........
युवा पौधे की शाखों ने,
बाड़ की रिक्तियों से निकल कर,
उसे थाम रखा था.......पूरी मजबूती से......

Lajawab rachna hai...