Wednesday, May 27, 2009

तुमने आवाज़ दी थी.........

बारिशें भाती न थीं,
बूँदें दिल में आरजू जगाती न थीं,
सुबह आ के जगा जाती थी,
रात जाते जाते,
रुला जाती थी...............

कोई अपना भी है ज़माने में,
ये एहसास कहाँ था,
सुकून तो था दुनिया भर में,
पर मेरे पास कहाँ था..............

उठते गिरते कदम लिए जाते थे,
नामालूम मंजिलों की ओर,
गुमसुम तन्हाई चलती थी संग संग,
मुझे डराती थी और...............

तुम्हे देखती थी,
मेरी हसरत भरी निगाह हर रोज़,
तमन्ना तरस जाती थी,
सरे-राह हर रोज़...........

उन दिनों जब मैं ख़ुद से,
खफा खफा था,
तुमने आवाज़ दी थी,
एक रोज़ मुझे रोका था..........

पूछा था.............
क्यों ख़ुद पे सितम करते हो?...........
दोस्तों से,
राज़-ऐ-दिल कहने से डरते हो?............

बस यूँ ही देखता रह गया था,
तेरी आंखों के फरेब को,
तड़प कर पूछा था,
दिल ने उसी पल

दोस्त कहते हो..........
पर क्या आंखों की जुबां समझते हो?..............

दिल तो कह गया,
पर मैं न कह सका,
ज़माने से था,
तुम से था,
ख़ुद से भी मैं खफा खफा था...............

हाँ पर आज भी याद है मुझे,
तुमने पीछे से आवाज़ दी थी,
मुझे रोका था..........................